हमीरपुर (एमबीएम न्यूज़): कारगिल की लड़ाई में अपने पराक्रम का जौहर दिखाने वाले 14 जैक रायफल के शहीद जवान हवलदार दलजीत सिंह को 15 साल बाद भी न्याय नहीं मिल पाया है। आज भी उनका परिवार शहीद स्मारक को बनाने के लिए दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। लेकिन 15 साल के इस संघर्ष के बाद भी शहीद दलजीत सिंह के परिवार ने हार नहीं मानी है। आज भी उनका परिवार सरकार से आस लगाए बैठा है कि शायद सरकार को उनके बेटे की शहादत की याद आ जाए।
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शहीद हवलदार दलजीत सिंह का जन्म 19 अगस्त 1964 को जिला के गांव नुहाड़ा में हुआ था। जिला के गांव नुहाड़ा में जन्मे दलजीत सिंह को बचपन से ही खतरों से खेलने का शौक था। स्थानीय पाठशाला में बारहवी की पढ़ाई पूरी करने के बाद 18 वर्ष की आयु में ही दलजीत सिंह सेना में भर्ती हो गए। हैरानी की बात थी की पहली ही कोशिश में दलजीत सिंह ने यह कामयाबी पा ली थी। 1982 में 18 वर्ष की आयु में वह 14 जैक रायफल में भर्ती हो गए।
अपने पिता के सपने को साकार व पिता से मिली देश भक्ति की प्रेरणा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने छोटी सी उम्र में ही भारत माता की सेवा करने का प्रण ले लिया था। सन् 1999 से शुरू हुआ भारत पाक के बीच युद्व में उन्होंने टाइगर हिल को पाक से मुक्त करवाने के लिए साहस के साथ पाक सैनिको का सामना किया। पांच गोलियां लगने के बाद भी वह लड़ते रहे। घायल अवस्था में उन्हें जम्मू के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। 2 साल तक कोमा में रहने के बाद उन्होंने 1 अक्टूबर 2002 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
सन् 2002 में दुनिया को अलविदा कहने वाले शहीद हवलदार दलजीत सिंह को आज भी इंसाफ का इंतजार है। परिवार वालों को इस बात का तो गर्व है की उनका बेटा भारत माता के लिए शहीद हो गया। लेकिन इस बात का भी दुख है कि आज तक उनके बेटे के नाम पर शदीद स्मारक नहीं बनाया जा सका। शहीद हवलदार दलजीत सिहं की पत्नी लता देवी ने बताया कि आज भी उन्हें इस बात का गम है कि आज तक उनके पति का शहीद स्मारक नहीं बनाया जा सका है। आशवासन मिलने के बाद भी उन्हें आज तक न्याय नहीं मिल सका है।
गए थे दोस्त को भर्ती करवाने हो गए खुद……
शहीद हवलदार दलजीत सिंह की भारतीय सेना में भर्ती होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। दलजीत सिंह अपने दोस्त को भर्ती करवाने के लिए गए थे। लेकिन वो भी अपने दस्तावेज साथ ले गए थे। उनके दोस्त ने उन्हें भी दौड़ के लिए दौड़ने के लिए कहा सबको पछाड़ते हुए उन्होंने दौड़ क्लीयर कर ली। लेकिन उनका दोस्त रह गया। आज भी यह दास्तां गांव के हर परिवार वालो की जंवा पर है।