हमीरपुर ( एमबीएम न्यूज़ ) : जहां चाह है वहां ही राह होती है। यह शब्द जिला के उपमंडल भोरंज के गांव धिरड़ के ग्रामीणों ने सिद्व कर दिखाए है। कभी यह गांव गेंहू की बंपर फसल के लिए जाना जाता था। लेकिन कई सालों से लावारिस पशु व जमीन मेें पैदावार न होने से किसान रूष्ट हो गए थे। लेकिन अब कृषि विभाग ने किसानों को एक ऐसी तकनीक से अवगत करवाया है जिससे की यहां के किसान गेंहू की बंपर फसल पा सकते है।
उपमंडल भोरंज के किसानों की गेंहूँ की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिये कृषि विभाग ने इस बार नई तकनीक की ओर किसानों को अग्रसर किया है। भोरंज की भूमि काफी उपजाऊ है। लेकिन यहां सिंचाई के साधनों की कमी है जिस कारण यहां के किसानों को बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कृषि विभाग भी यहां पर पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। गेंहूँ की पैदावार बढ़ाने के लिए विभाग ने इस बार किसानों को प्रदर्शन प्लॉट विधि से फसलें उगाने को प्रेरित किया है।
उपमंडल भोरंज के धिरड़ पंचायत के भोगों गांव के किसानों ने इस बार गेंहू की ज्यादा पैदावारी के लिये कृषि विभाग के साथ मिलकर लगभग 15 हैक्टेयर 375 कनाल में प्रदर्शन प्लॉट विधि से गेंहू बिजी गई है । यानी इस विधि द्वारा गेंहू को कतारों में बीजा गया है और कतारों के बीच उचित दूरी रखी गई है। किसानों का मानना है कि इस बार यदि समय पर बारिश हुई और लावारिस पशुओं से फसल बर्बाद न हुई तो बंपर पैदावार होगी।
भोरंज कृषि विभाग के एसएमएस सतीश शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि विगत 40 वर्षों में देश में गेहूं उत्पादन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की हैं और भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बन गया हैं। उन्होंने बताया कि संतुलित खाद के उपयोग से फसल का भरपूर उत्पादन, सिमित जुताई करना, सुहा रोधी एवं कम सिंचाई वाली उचित किस्मों का अधिकाधिक उपयोग, सिंचाई जल की उपयोगिता बढ़ाने वाले खेती के तरीकों को अपनाना, खेती के जहरीले रसायनों का उपयोग कम करना, गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र इत्यदि से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
गेहूं की रोग रहित अधिक क्षमता वाली प्रजतियों के उपयोग से पैदावार बिना अतिरक्त व्यय के बढ़ाई जा सकती हैं। भारत की विभिन्न कृषि जलवायु की दशाओं में गेहूं की खेती के लिए प्रजातियां उपलब्ध हैं। गेहूं के वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से विभिन्न दशाओं के लिए प्रचुर मात्रा में प्रजातियां उपलब्ध हैं। किसानों को प्रत्येक दशा में एक से अधिक प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए। जुताई का मुख्य उद्देश्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना हैं।
अगर किसान नवीनतम जुताई तकनीक जैसे जीरो टिलेज इत्यादि का उपयोग न कर रहे हो तो कल्टीवेटर एवं डिस्क हेरों से लगातार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले। परन्तु सर्वोत्तम यह होगा कि संसाधन प्रबंधन तकनीक का ही इस्तेमाल करें। मैदानी भाग में विविध फसल अनुक्रमों की वजह से खेत की तैयारी एवं अवशेष प्रबंधन में सावधानी बरतें। धान,गेहूं उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वी मैदानी क्षेत्रों का एक प्रमुख फसल चक्र हैं। खेत की तैयारी करते समय यह ध्यान रखने की बात हैं कि बुवाई करते समय नमी की मात्रा उपयुक्त हो। अन्यथा जमाव पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
सोना उगलती थी ग्राम पंचायत धिरड़ की भूमि..
भोरंज की ग्राम पंचायत धिरड़ की जमीन कभी सोना उगलती थी यानि यहां की भूमि बहुत उपजाऊ है। यहां पर सिंचाई के लिए भी कूल्हों की व्यवस्था थी। लेकिन धीरे-धीरे रख-रखाव के बिना ये कुल्हें खराब होती गई और दूसरे आवारा पशुओं की समस्या से भी किसान परेशान हो गए हैं। लोग अब खेती करना भी छोड़ रहे हैं जिससे अब यहां की भूमि बंजर बनती जा रही है आवारा पशु किसानों की फसलों को चट कर जाते हैं।