शिमला (एमबीएम न्यूज) : दशकों से सत्ता का पावर प्वाइंट कांगड़ा बनता है। पिछले तीन चुनावों की बात की जाए तो सरकार उसी की बनती है, जो कांगड़ा में सबसे ज्यादा सीटें जीतता है। 1998 से 2012 तक दो मर्तबा भाजपा तो दो बार कांग्रेस को सत्ता मिली। चारों ही बार कांगड़ा अहम रहा। यही वजह है कि इस बार भी सियासतदानों की नजरें कांगड़ा पर टिकी हुई हैं। सर्वाधिक 15 सीटें हैं।
1998 के चुनाव में भाजपा का आंकड़ा 11 तक पहुंचा। इसी के बूते सरकार बन गई। 2003 में 11 का आंकड़ा कांग्रेस के हाथ लगा तो उनकी सरकार बन गई। 2007 में भाजपा ने 9 सीटें जीती थी। वहीं 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें हाथ लगी थी। 2007 तक कांगड़ा में 16 विधानसभा क्षेत्र थे, लेकिन पुनर्सीमांकन के बाद एक सीट घट गई।
खास बात यह है कि सूबे के सबसे महत्वपूर्ण कांगड़ा जिला ने कभी भी तीसरे विकल्प को तवज्जो नहीं दी। 1998 व 2003 में हिविकां ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन कोई भी जीत हासिल नहीं कर सका। इसी तरह 2012 में हिमाचल लोकहित पार्टी को भी नकार दिया। मतलब साफ है कि भाजपा व कांग्रेस में मुकाबला सीधा होता है।