नाहन (एमबीएम न्यूज) : पच्छाद विकास खंड के धारटीधार इलाके की एक दर्जन पंचायतों मेंं अनारदाना का सीजन यौवन पर है। जंगलों समेत निजी जमीनों में उगने वाले दाडू (अनार की किस्म) को तोड़ कर दो हिस्सों में बांट दिया जाता है। इसके बाद दानों को निकालने का काम होता है। सूखने के बाद कुदरती तौर पर दाडू के दाने खुद अनारदाने की शक्ल ले लेते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि दाडू के पौधे लगाने के लिए किसानों को कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती। खेतों की मेढों व बंजर जमीन के अलावा जंगलों में कुदरत ही इन पौधों की सौगात देती है। दाडू के पेड़ की उम्र 3-4 साल होने के बाद फल मिलना शुरू हो जाता है। इन दिनों धारटीधार के कई इलाकों में दाडू के पेड़ फलों से लदकद हैं। इन्हें तोड़ कर अनारदाना बनाने का काम दिन-रात चल रहा है।
किसानों की आर्थिकी में अनारदाने की फसल रीढ़ की हड्डी कहलाई जाती है। अपने खट्टे-मीठे स्वाद व औषधीय गुणों से भरपूर अनारदाना काफी ऊंचे दामों पर बिक रहा है। गत वर्ष 500 रुपए प्रति किलो तक बिका था। कुदरत की सौगात देखिए, दाडू के पेड़ की उम्र भी काफी रहती है। कुछ पंचायतों में तो अनारदाना भी लाल सोना कहलाने लगा है।
रोचक बात यह भी है कि इस फसल को लेने के लिए न ही कोई स्प्रे, न ही कोई खर्च होता है। अब तक इस इलाके में दाडू से दाना निकालने की कोई आधुनिक तकनीक उपलब्ध नहीं है। भारी बारिश की सूरत में फल पेड़ों से गिर जाता है। धूप न होने की सूरत में दानों को सुखाना भी बड़ी चुनौती बन जाता है। दाडू का छिलका भी पशुओं की दवाओं के लिए उपयोग में लाया जाता है।
नारग के वन परिक्षेत्र अधिकारी हीरा सिंह ठाकुर का कहना है कि विभाग द्वारा दाडू के पौधे मुहैया करवाए जा रहे हैं।