घुमारवीं (सुभाष कुमार गौतम): उपमंडल के अन्तर्गत पड़ने वाली पंचायतों में हो रहे मनरेगा के कार्यों में काम करने वाली महिलाओं ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार ग्रांटी अधिनियम पर कई तरह के सवाल उठाए हैं। मनरेगा में काम करने वाली महिलाएं इस काम को अपनी ख़ुशी से नहीं बल्कि मजबूरी मानती हैं । मनरेगा के तहत चल रहे एक कार्य पर काम कर रही महिलाएं सरकार के द्वारा कराए जा रहे इन कार्यों से रूष्ट नजर आई, इस काम को एक मजबूरी बताया गया। मनरेगा के तहत काम करने वाली महिलाओं पूनम कुमारी, रक्षा देवी, अनीता कुमारी, अमीता धीमान° अनीता शर्मा, कवीता शर्मा, फूलां धीमान ने बताया कि मात्र 179 रूपए में मनरेगा के अधिकारियो द्वारा प्रोग्रेस मांगी जाती है। उनका कहना है कि मिट्टी उठाने की काम आसान नहीं है।
सबसे बड़ी बात की पंचायते काम करने वाली महिलाओं को किसी भी कार्य की खुदाई के लिए कोई सामान नहीं देती, अपना ही सामान लाकर काम करना पड़ता है । औज़ारों को अपने पैसे देकर तेज करवाना पड़ता है, जो दिहाड़ी मिलती है वह ईसी पर खर्च हो जाती है । महिलाओं का कहना है कि अगर काम न करें तो पंचायते हमारी सरकारी सुविधा बंद कर देती है। महिलाओं का कहना था कि आज 500 रूपए से कम कोई मजदूर नहीं मिलता । यहां तो आज के काम के पैसे को मिलने में महीनों तक लग जाते हैं और वो भी पूरे नहीं मिलते। सबसे बड़ा सवाल यह है कि केवल महिलाओं से ही काम की प्रोग्रेस क्यों मांगी जाती है जबकि सरकारी नौकरी करने वाला एक मुलाजिम जिसको 40-50 हजार रुपये महीना पगार मिलती है।
मनरेगा के ब्लॉक सहायक अभियंता राजेश कुमार से बात की गई उनका कहना है कि मनरेगा में काम करने वालो को 179 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से दिए जाते हैं जितना पैसा जिस कार्य के लिए दिया जाता है उनको उसी में पूरा करना पड़ता है जिस कारण कई बार मनरेगा में काम करने वालों को कम दिहाड़ी पड़ती हैं इसलिए यह सब काम की प्रोग्रेस न निकलने के कारण होता है। कई बार बजट की समस्या के कारण लाभार्थी के द्वारा कमाया गया पैसा कुछ समय बाद उसके खाते में जमा हो पाता है, पंचायत किसी भी कार्य के लिए औजार नहीं देती है । बहरहाल उन्होंने माना कि महिलाओं का योगदान घुमारवीं उपमंडल मनरेगा के तहत चल रहे कार्यों में सबसे अधिक है, महिलाए मनरेगा के कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा रही है । उनका यह यह भी कहना था मनरेगा का काम जबरन नहीं करवाया जाता है।