नाहन, 29 अक्टूबर : हिमाचल प्रदेश का शिलाई निर्वाचन क्षेत्र मौजूदा चुनाव में एक हॉट सीट (Hot seat) बनकर उभरा है। इसके दो कारण हैं, पहला ये कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (CM Jairam Thakur) की प्रतिष्ठा दांव पर है। पार्टी प्रत्याशी बलदेव तोमर मुख्यमंत्री के करीबी दोस्त है।
इसी वजह से सीएम ने शिलाई (Shillai) के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने न केवल पूर्व विधायक व मौजूद में पार्टी के प्रत्याशी बलदेव तोमर की मांगों को पूरा किया है, बल्कि अंतिम समय पर हाटी के मुद्दे का मास्टर स्ट्रोक (Master Stroke) भी खेला गया। ये अलग बात है कि अधिसूचना (Notification) जारी न होने की बात भाजपा को परेशानी खड़ी कर रही है। सरकार में तोमर को अहम ओहदे से भी नवाजा गया। लिहाजा अब खुद ही मुख्यमंत्री की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है।
दूसरी तरफ कांग्रेस के दिग्गज नेता हर्षवर्धन चौहान है, जिनके परिवार ने 50 साल में मात्र दो मर्तबा ही विधायकी खोई है। विधानसभा क्षेत्र में अगर 50 साल का इतिहास देखा जाए तो कांग्रेस ने यह सीट मात्र दो बार ही खोई है। कांग्रेस में दिवंगत ठाकुर गुमान सिंह चौहान के बाद बेटे हर्षवर्धन चौहान ने पिता की विरासत को संभाला हुआ है। 1972 से 1985 तक ठाकुर गुमान सिंह लगातार चार चुनाव जीते। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद भी जीतने में सफल हुए थे।
आपको बता दें कि विश्व भर में पहलवानी का लोहा मनवाने वाले रेसलर द ग्रेट खली (Wrestler The Great Khali) उर्फ दिलीप सिंह राणा का भी ये गृह निर्वाचन क्षेत्र है। अरसा पहले खली ने भाजपा के दिल्ली मुख्यालय (Delhi Headquarters) में पार्टी की सदस्यता को ग्रहण किया था। मगर लोकल पॉलिटिक्स में द ग्रेट खली नजर नहीं आये है, एक बार खली की भाभी अवश्य ही नैनी धार पंचायत से निर्विरोध प्रधान बनी थी।
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इस बार नहीं तो कभी नहीं… भाजपा प्रत्याशी बलदेव तोमर का चुनाव में राजनीतिक जीवन भी दांव पर लगा हुआ है। यदि, तोमर इस बार चुनाव नहीं जीते तो आने वाला राजनीतिक समय मुश्किलों भरा होगा। सीएम जयराम ठाकुर ने ही तोमर को विधायक बनाने की जमीन एक साल पहले तैयार करनी शुरू कर दी थी। इसमें भी अतिशोयक्ति नहीं है कि “यारा तेरी यारी” फ़िल्मी गीत को रियल लाइफ (real life) में सार्थक करने की कवायद भी शुरू की थी।
पहली बार कैबिनेट की मजबूत होगी दावेदारी…. वैसे तो बचपन में ही हर्षवर्धन चौहान में राजसी सुख भोगा है। पिता दिवंगत ठाकुर गुमान सिंह हिमाचल की राजनीति में एक स्तंभ रहे। पहले भी कांग्रेस की सरकार बनने पर हर्ष चौहान कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) बनने की दौड़ में रहे, लेकिन बाजी हाथ नहीं लगी। कांग्रेस की सरकार बनने पर मंत्रिमंडल की दौड़ में शामिल हो सकते है।
आंकड़ों का खेल… 2012 में भाजपा के मौजूदा प्रत्याशी बलदेव सिंह तोमर ने ही पहली बार निर्वाचन क्षेत्र में कमल का फूल खिलाया था। यह अलग बात है कि 2007 के चुनाव में तोमर को एक शर्मनाक हार का भी सामना करना पड़ा था। भाजपा के बगावती अमर सिंह चौहान ने 16783 मत लेकर खेल बिगाड़ दिया था। 2003 में भी भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ा। पार्टी के अधिकृत कैंडिडेट दिलीप सिंह के खिलाफ जगत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा।
हिमाचल विकास कांग्रेस पार्टी भी मैदान में थी। पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सीताराम शर्मा इस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता हर्षवर्धन चौहान के राइट हैंड है। 2003 में सीताराम शर्मा ने हिमाचल विकास कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 3,105 वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ तकरीबन 55 फीसदी मतदान हुआ था, बावजूद इसके जीत का सेहरा हर्षवर्धन चौहान ने ही पहना।
1998 के चुनाव के बात की जाए तो भाजपा ने जगत सिंह को पार्टी का प्रत्याशी बनाया था। जगत सिंह ने 11,646 वोट हासिल करने में सफल हुए थे, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी हर्षवर्धन चौहान ने 21,234 वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। हिमाचल विकास कांग्रेस के प्रत्याशी सीताराम शर्मा को मात्र 693 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। जनता दल से भाजपा में आए जगत सिंह नेगी को 1,993 में भाजपा ने टिकट दिया वो 12,254 वोट प्राप्त करने में सफल हो गए, लेकिन 19,092 मत हासिल कर कांग्रेस के हर्षवर्धन चौहान को ही सफलता मिली थी। निर्वाचन क्षेत्र में पचास साल में 1972, 1985 व 1993 में ही सीधा मुकाबला हुआ था।
1990 में भी मुकाबला त्रिकोणीय हुआ था। जनता दल के टिकट पर जगत सिंह नेगी 13,375 वोट हासिल कर विजेता घोषित हुए थे। हर्षवर्धन चौहान ने 9,907 वोट प्राप्त किए। इसके अलावा एक निर्दलीय प्रत्याशी शोभाराम चौहान ने भी 5,925 वोट हासिल कर शानदार प्रदर्शन किया था।
हर्षवर्धन चौहान व बलदेव तोमर की चल एवं अचल संपति… शिलाई से कांग्रेस उम्मीदवार व मौजूदा विधायक हर्ष वर्धन चौहान की बात करें तो वह 13.65 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। उनके पास 1.65 करोड़ की चल संपत्ति है। उनके पास 3 गाड़ियां भी हैं, जिनकी किमत 40 लाख रुपये है। हर्षवर्धन दम्पति ने पोस्ट ऑफिस और इंश्योरेंस में 43 लाख रुपये की इंवेसमेन्ट की है। उनके पास चार लाख और पत्नी के पास 25 लाख के जेवर हैं।
चुनावी हलफनामे (affidavit) पर नजर डालें तो हर्षवर्धन के पास 12 करोड़ की कीमत की अचल संपत्ति है। शिलाई में हर्षवर्धन के परिवार की 73.8 बीघा खेती योग्य जमीन है, जिसमें सेब के बगीचे भी हैं। इसकी कीमत चार करोड़ है। इसके अलावा उनका न्यू शिमला में एक प्लाट है, जिसे वर्ष 1998 में खरीदा गया था। इसकी आज कीमत एक करोड़ है। बनग्राम-पांवटा साहिब सड़क मार्ग पर हर्षवर्धन का 2.50 करोड़ का व्यसायिक भवन भी है। हर्षवर्धन पर 45.18 लाख की देनदारियां हैं।
उधर, शिलाई से भाजपा उम्मीदवार बलदेव तोमर के पास करोड़ों की चल एवं अचल संपत्ति है। नामांकन के दौरान दिए चुनावी हलफनामे में बलदेव तोमर ने 4 करोड़ 94 लाख की संपत्ति दिखाई है। इनमें 38 लाख की चल और 4.56 करोड़ की अचल संपत्ति है। हलफनामे के मुताबिक बलदेव तोमर पर 26.31 लाख की देनदारियां भी हैं। उन्होंने हिमाचल विधानसभा से 22.31 लाख का होम लोन और चार लाख का वाहन लोन लिया है।
हलफनामे के मुताबिक बलदेव तोमर के पास 17 लाख की कीमत की स्कॉर्पियो है। इसे उन्होंने चार साल पहले खरीदा था। उनके पास तीन लाख और उनकी पत्नी के पास 5.60 लाख के जेवरात हैं। वहीं अचल संपत्ति में बलदेव तोमर की पत्नी के नाम कमरऊ में 23 बीघा की कृषि योग्य भूमि है। इसके अलावा पांवटा साहिब में दम्पति के नाम दो रिहायशी भवन भी हैं।
वहीं निर्वाचन क्षेत्र में राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने रिटायर्ड फौजी सुरेश शर्मा को भी मैदान में उतारा है।
मतदाताओं का अंकगणित
शिलाई निर्वाचन क्षेत्र में 10 अक्टूबर 2022 तक 73600 वोटर्स दर्ज हुए है। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 38072 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 35528 है। सर्विस वोटर्स की संख्या 461 है। निर्वाचन क्षेत्र में मत प्रतिशत 75 से 80 % रहने की उम्मीद है। 3727 मतदाता पहली बार वोट डालेंगे। इनमे 1726 गर्ल्स है। 20 से 29 साल के 20150 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। साफ़ जाहिर है कि यंग वोटर्स ही प्रत्याशियों के गुण व दोष का फैसला करेंगे।
19 साल में दो बार बगावत…
2003 से 2022 के बीच भाजपा को दो चुनावों में बगावत का सामना करना पड़ा। इस कारण पार्टी तीसरे स्थान पर रही। 2003 में भाजपा ने दलीप सिंह को टिकट दिया, लेकिन जगत सिंह ने बगावत कर निर्दलीय ही चुनाव लड़ा। 2007 में भाजपा ने बलदेव तोमर को प्रत्याशी बनाया। बगावत कर रिटायर्ड चीफ इंजीनियर अमर सिंह चौहान मैदान में उतरे। 2007 के आंकड़े बताते हैं कि अगर भाजपा ने चौहान को टिकट दिया होता तो सीट पर फूल खिल जाता।