शिमला/ प्रकाश शर्मा : साल 2008, आठ साल का एक होनहार लड़का रजत, जिसके लिए माता-पिता ने डॉक्टर बनने का सपना देखा था, एक दिन छत पर खेल रहा था। घर पर कुछ दिन पहले ही दादा का देहांत हुआ था। लेकिन दादा के देहांत के दु:ख से दूर रजत का बाल मन खेल में मशगूल था। खेलते-खेलते रजत ने हाथ में डंडा उठाया और अचानक साथ लगती एचटी लाइन की चपेट में आ गया। रजत को करंट का जोरदार झटका लगा। डॉक्टरों ने रजत की जान तो बचा ली, लेकिन 8 साल की उम्र में रजत ने अपने दोनों हाथ खो दिए।
शुरुआत में रजत को कुछ समझ ही नहीं आ पा रहा था। रजत को लगता था कि दुनिया ऐसे ही चलती है और एक दिन सभी के साथ ऐसा होगा। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ यह समझ आने लगा कि उसने कुछ ऐसा खो दिया है, जिसके बिना जीवन में इसे कई दुश्वारियों का सामना करना पड़ेगा। रजत को समझ आ गया कि अब हाथ कभी वापस नहीं मिलेंगे। आगे का जीवन अब उन्हें इसी तरह जीना होगा। रजत ने साबित किया है कि शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाए तो व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाती हैं।
हाथ खोए, लेकिन हौसला नहीं…
मूल रूप से मंडी जिला के सुंदरनगर के रहने वाले रजत कुमार के हाथ तो चले गए, लेकिन हौसला बढ़ता गया। वक्त बीता, तो आगे बढ़ने के लिए रजत अपने रोजमर्रा के काम हाथ की जगह पैर से करने लगा। स्कूल की पढ़ाई भी नहीं छोड़ी और पापा के कहने पर पैरों से लिखने लगा। घर में माता-पिता तो स्कूल में अध्यापकों से मदद मिली। संघर्ष व दृढ निश्चय का परिणाम सामने है, वर्तमान में रजत हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रहा है।
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रजत ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से फ़ोन पर लंबी बातचीत की और अपने जीवन की दास्तां बयां की। रजत को हादसे के बारें में ठीक से कुछ याद भी नहीं है। रजत ने बताया कि अस्पताल में ही पैरों से पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया था। बचपन से ही पेंटिंग का शौक था। एक दिन पेंटिंग ब्रश पैरों की जगह दांतों की मदद से पकड़ लिया। उस समय महसूस हुआ कि दांत से ज्यादा बेहतर ग्रिप बनती है। इसके बाद रजत ने पैरों की जगह दांत से लिखना शुरू किया। रजत ने दांत में पेन फंसाकर लिखने का अभ्यास किया और इसमें प्रवीणता हासिल की। अब रजत दांतों में पेन फंसा कर ही लिखते हैं। रजत की साफ सुथरी लिखाई देख हर कोई हैरान हो जाता है। रजत ने बताया कि जब वह पांव से लिखते थे तो उन्हें जूते पहनने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था।
10वीं व 12वीं में भी अव्वल, NEET परीक्षा भी की पास
रजत बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहे हैं। रजत ने दसवीं कक्षा में 700 में से 633 अंक प्राप्त किए। वहीं जमा दो में 500 में से 404 अंक लेकर यह साबित कर दिया कि जीवन में आगे बढ़ाने के लिए हौसले की जरूरत होती है न की सुख-सुविधाओं की। रजत ने यह कारनामा मुंह से लिखकर किया है। रजत ने किसी भी प्रकार के लेखक की मदद नहीं ली। हौसले के दम पर रजत ने सफलता की एक बेहतरीन इबारत लिखी है।
इतना ही नहीं, रजत ने 2019 में नीट परीक्षा भी पास कर ली थी। रजत के माता-पिता का सपना था कि बेटा डॉक्टर बने, लिहाजा रजत ने भी दोनों हाथ न होने के बावजूद भी कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ी। डॉक्टर बनने की एक सीढ़ी को भी लांघ लिया था, लेकिन चुनौतियां बाकी थी। रजत को मेडिकल कॉलेज ने दाखिला देने से इनकार कर दिया गया। इसके लिए रजत ने कानूनी लड़ाई भी लड़ी। लेकिन आखिर में रजत को हार माननी पड़ी। रजत का डॉक्टर बनने का सपना, सपना ही रह गया।
रजत ने बताया, जीवन में यही एक पल था जब लगा कि शायद हाथ होते तो मैं कुछ बेहतर कर पाता। लेकिन सकारात्मक तरीके से सोचा कि उनके हाथ होते तो शायद वह इतने रचनात्मक न होते। रजत ने बताया कि हाथ न होने का कोई दुख नहीं। जैसे हैं, वैसे ही आगे बढ़ना है। वर्तमान में रजत अपनी मेहनत से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में MA साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं। रजत ने कभी परीक्षा में लिखने के लिए किसी की मदद नहीं ली।
ये सन्देश…
रजत कुमार बेहद सकारात्मक सोच रखते हैं। रजत ऐसे लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो मामूली से शारीरिक कष्ट से हार मान लेते हैं। तमाम संसाधन होने के बावजूद भी सफल न होने के बहाने ढूंढते हैं। रजत ने बताया कि उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ कि भगवान ने उनसे कुछ छीना है। वह कुछ बड़ा हासिल करने के लिए हमेशा ही सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। उन्होंने दूसरों को भी ऐसे ही करने की प्रेरणा दी है।
कुल मिलाकर इसमें कोई दो राय नहीं है कि “पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।” आगे बढ़ने का हौसला हो तो कठिन से कठिन पड़ाव को भी आसानी से पार किया जा सकता है।
@A1