धर्मपुर(मंडी)/उमेश ललित
मंडी के हिमालय के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्ध किला कमलाह जिले की सबसे शानदार धरोहरों में से एक है। इसी किले में विख्यात बाबा कमलाहिया का भव्य
मंदिर है। कभी सामरिक दृष्टि से अगम्य कहे जाने वाले इस किले और वर्तमान धार्मिक आस्था के प्रतीक कमलाहिया मंदिर को उपेक्षा का दंश लग चुका है। तकरीबन 4772 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस किले को बाहरी आक्रमणकारियों ने कम और अपने लोगों ने भारी नुकसान पहुंचाया है। इस किले के शस्त्रागार में तरह तरह के हथियार, तलवारें, भाले, बंदूकें, तोपें और गोला-बारूद के अलावा अन्न और बर्तनों का अकूत भंडार था । गागर, पीतल की परात, कड़ाहियां, तांबे की डेग आदि लाखों का सामान तथा खड़ग बिजली नामक बेमिसाल तोप जैसी अति महत्वपूर्ण चीजें कहां गायब हो गईं कोई नहीं जानता।
मंदिर है। कभी सामरिक दृष्टि से अगम्य कहे जाने वाले इस किले और वर्तमान धार्मिक आस्था के प्रतीक कमलाहिया मंदिर को उपेक्षा का दंश लग चुका है। तकरीबन 4772 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस किले को बाहरी आक्रमणकारियों ने कम और अपने लोगों ने भारी नुकसान पहुंचाया है। इस किले के शस्त्रागार में तरह तरह के हथियार, तलवारें, भाले, बंदूकें, तोपें और गोला-बारूद के अलावा अन्न और बर्तनों का अकूत भंडार था । गागर, पीतल की परात, कड़ाहियां, तांबे की डेग आदि लाखों का सामान तथा खड़ग बिजली नामक बेमिसाल तोप जैसी अति महत्वपूर्ण चीजें कहां गायब हो गईं कोई नहीं जानता।
दिलचस्प बात यह है कि मंडी के सेन वंश के उत्तराधिकारियों ने वर्ष 1947 में किले में रखी अमूल्य वस्तुओं की खुली नीलामी कर डाली थी जिससे करोड़ों का माल कौड़ियों में नीलाम हो गया। स्थानीय लोगों को सबसे ज्यादा दुःख अष्ट धातु से निर्मित तोप खड़ग बिजली का हुआ था जो किले की शान थी।इस किले का निर्माण मंडी के राजा हरी सेन ने 1605 ईस्वी में शुरू कराया था लेकिन राजा की अकस्मात् मौत हो जाने से उसके पुत्र राजा सूर्य सेन ने निर्माण पूरा कराया। बाद में मंडी के शासकों श्याम सेन, शमशेर सेन और ईश्वरी सेन ने इसे प्रमुख भंडारण केंद्र और गुप्त किले के रूप में विकसित किया। इटली के रहने वाले जनरल बेंचुरा जो सिख सेना का सेनापति था, ने किला कमलाह को फतेह करने का गौरव हासिल किया था।
दुखद बात यह है कि इस धरोहर को बाहरी लोगों ने कम और अपने लोगों ने ज्यादा नुकसान पहुंचाए हैं। चौकी, चौबारा, पदमपुर, शेरपुर और नरसिहंपुर के मध्य स्थापित यह अभेद्य दुर्ग और प्राचीन धरोहरों का केंद्र खंडहर में तब्दील हो चुका है। बावड़ियां और तालाब पत्थरों से भर चुके हैं।यहां के आराध्य देव बाबा कमलाहिया जो बाबा बालकनाथ के समकालीन थे, के मंदिर का काम कई वर्ष बीत जाने पर भी पूरा नहीं हो पाया है।
राजनीति की आंच से यह स्थान भी अछूता नहीं रहा है । पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग द्वारा भी किए गए प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। पूरा वर्ष श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आवाजाही के बावजूद यहां सुविधाओं का जबरदस्त अभाव है। एक हजार सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई चढ़ने के बाद बाबा के दर्शन होते हैं।करीब पांच सौ सीढ़ियों के पश्चात् एक सराय का निर्माण किया गया है जबकि उसके बाद मंदिर तक कोई आश्रालाय न होने से यात्रियों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। व्यापार मंडल संधोल के अध्यक्ष राजेंद्र मंढोत्रा ने बताया कि लोगों की सुविधा के लिए मंडल के सदस्य टीन का शेड बनवा रहे हैं ताकि बारिश पानी में श्रद्धालुओं का बचाव हो सके। यहां लगे तीनों वाटर कूलर भी ख़राब पड़े हैं।मंदिर के नजदीक सराय न होने से जनता को भारी असुविधा उठानी पड़ती है।
उपमंडलाधिकारी एवं मंदिर कमेटी के चेयरमैन किशोरी लाल ने वाटर कूलर खराब होने और मंदिर निर्माण में विलंब होने के प्रश्न पर अनभिज्ञता जाहिर की जबकि क्षेत्र के विधायक ठाकुर महेंद्र सिंह ने वर्तमान प्रदेश सरकार पर किला कमलाह की उपेक्षा का आरोप जड़ा। उन्होंने बताया कि जल्द ही इस किले और मंदिर की भव्यता को निखारा जाएगा।