नाहन (रेणु कश्यप): जैसे ही रियो ओलम्पिक्स में देश की बेटी पीवी सिंधु को रजत पदक मिला, ठीक उसी समय हिमाचल की नंबर-1 बैडमिंटन खिलाड़ी आरजू ठाकुर के चेहरे पर लंबी मुस्कान तैर गई। हो भी क्यों न, क्योंकि आरजू ने भी पीवी सिंधु के साथ इंडियन कैंप में हिस्सा लिया था। साथ ही बैडमिंटन भी खेला था।
15 मई 1994 को ददाहू में इंद्र सिंह व अंजना ठाकुर के घर जन्मी आरजू ठाकुर को बैडमिंटन कैरियर में हार्ड लक का सामना करना पड़ रहा है। तीन साल पहले बैंगलोर बैडमिंटन खेलने गई थी, उस समय दुर्घटना हुई। पिछले एक साल से पीजीआई चंडीगढ़ में घुटने का उपचार चल रहा है। डॉक्टरों की सलाह पर अब जल्द ही आरजू पूरे जुनून से कोर्ट में उतरने की तैयारी कर रही है।
कमाल देखिए, सिरमौर की बेटी ने घुटने के दर्द के बावजूद मंडी में स्टेट टूर्नामेंट खेला। इसमें भी नंबर-1 बनी रही। 2003 में अंडर-13 से खेलना शुरू किया, तब से प्रदेश की नंबर-1 बैडमिंटन खिलाड़ी बनी हुई हैं। पंजाब विश्वविद्यालय में सोशलॉजी विषय में एमए कर रही आरजू ने शनिवार को फोन पर एमबीएम न्यूज से बातचीत की। ओलम्पिक में देश को रजत पदक मिलने से आरजू बेहद उत्साहित नजर आई। वह इस बात को लेकर बेहद खुश थी कि बैडमिंटन का देश में रुतबा बढ़ा है।
आरजू का कहना है कि लगभग पांच साल पहले उसने जब इंडियन कैंप में पीवी सिंधु के साथ हिस्सा लिया था, तब काफी हद तक लग रहा था कि आने वाले सालों में पीवी सिंधु कुछ कर दिखाएगी। हिमाचली बेटी आरजू के खेल को लेकर माता-पिता ने जो संघर्ष किया है, वो शायद ही कोई कर पाए। माता-पिता ने अपनी सरकारी नौकरी की पूरी पूंजी ददाहू में बैडमिंटन कोर्ट बनाने के अलावा आरजू को देश के अलग-अलग हिस्सों में टूर्नामेंट में हिस्सा दिलवाने पर खर्च कर दी। आज भी पिता इंद्र सिंह द्वारा बनाए गए कोर्ट में ददाहू के बच्चों के लिए अकादमी चल रही है।
आलोचना नहीं, इसे पॉजीटिव तरीके से सोचे सरकार
यहां सरकार की आलोचना नहीं की जा रही, बल्कि यह सरकार को सोचना चाहिए। एक ऐसी हिमाचली बेटी, जिसने सात साल की उम्र से बैडमिंटन खेलना शुरू किया उसे सरकार इमदाद देती तो क्या वह बेटी आज प्रदेश का नाम अंतरराष्ट्रीय मानचित्र के फलक पर रोशन नहीं कर सकती थी। माता-पिता ने ही पूरी पूंजी लगा दी। सरकार अगर इस बिटिया को 5-6 साल पहले हैदराबाद की उस अकादमी में भेज देती, जहां ओलम्पिक पीवी सिंधु ने गुर सीखे, तो क्या आरजू भी उसी फलक पर नहीं पहुंच सकती थी।