बद्दी (एमबीएम न्यूज़) : हिमाचल प्रदेश में गत्ता पेटी बाक्स बनाने वाले उद्योगों ने गुरुवार से हडताल शुरु कर दी है, जिससे प्रदेश में उद्योगों की सरंचना व कार्यप्रणाली पर संकट खडा हो गया है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के करोड़ों के कारोबार को गत्ता उद्योगों व पेपर मिल मालिकों के झगडे ने तगडा झटका दिया है। पेपर मिल मालिकों ने मात्र अढाई रुपए पेपर के दाम बढ़ाए हैं, जिससे उत्तर भारत की सैंकड़ों कंपनियों के करोड़ों रुपए के कारोबार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पेपर मिल मालिकों के दाम बढ़ाते ही देशभर के गत्ता उद्योग मालिकों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। गत्ता उद्योगों ने पेपर मिल मालिकों पर तानाशाही के आरोप लगाए हैं, लेकिन गौर करें तो पेपर मिल मालिक भी अपने वजूद को बचाने में लगे हैं। पेपर मिल मालिकों ने अपना दुख बयान करते हुए कहा कि पिछले छह माह में रॉ मैटिरियल का मुल्य 10 रुपए से बढ़कर 14 रुपए प्रति किलो हो गया है। ऐसे में ढाई रुपए बढ़ाना नाकाफी है, हालांकि जल्दी ही चार रूपए तक की वृद्धि अभी स्वाभाविक है।
उधर दूसरी ओर बढ़ाए गए पेपर के रेट से प्रभावित गत्ता उद्योगों की अनिश्चितकालीन हड़ताल आज वीरवार को शुरू हो गई है। दूसरी ओर पेपर मिल मालिकों का कहना है कि यह हड़ताल पेपर मिल मालिकों पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाएगी। पिछले कई वर्षों से करोड़ों का घाटा झेल रही पेपर मिलें अभी चार रूपए तक और बढ़ाने की योजना बनाए बैठी हैं ऐसे में गत्ता उद्योग की हड़तालें मात्र एक दिखावा बनकर रह जाएंगी। पेपर मिल मालिकों की मानें तो प्रदेश के गत्ता उद्योग मालिक हाथियों के पैरों तले कुचले जा रहे हैं बावजूद उसके भी वह गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। देशभर में एमएनसी कंपनियां पेपर मिलों और गत्ता उद्योगों के बीच डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसी अपना रही है।
हिमाचल प्रदेश पेपर मिलस एसोसिएशन के प्रदेश संयोजक दीपक भंडारी ने कहा कि मल्टी नेशनल कंपनियां गत्ता उद्योगों को आपस में लड़वा कर ही अब तक अपना मुनाफा कमाती आई हैं। हर वर्ष जब पेपर मिलें अपनी स्थिती सुधारने का प्रयास करने के लिए कदम बढ़ाती हैं तो गत्ता उद्योगों की हड़तालें शुरू हो जाती हैं। इस क्रियाकलाप से प्रभावित होने वाला मल्टीनेशनल जगत खामोश रहकर अपना मुनाफे का इंतजार करता है और विकल्प के तौर पर दूसरे राज्यों से बॉक्सिस की आपूर्ति कर लेता है। सूत्रों की मानें तो गत्ता उद्योग कंपीटीशन के चलते मल्टीनेशनल कंपनियों के आगे नतमस्तक हो जाती हैं और सस्ते रेट पर ही उन्हें सामान सप्लाई करती आ रही है।
हड़ताल के शोर शराब के बावजूद भी पेपर मिल बढ़ाएंगी चार रुपए
उत्तर भारत में पेपर मिलों के खराब चल रहे हालात उन्हें आगामी दिनों मे चार रुपए और बढ़ाने को मजबूर कर रहे हैं। गत्ता उद्योगों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के शोर शराबे के बावजूद भी अपना वजूद बचाने के लिए पेपर मीलें पेपर के दामों में प्रति किलो चार रूपए का ईजाफा करेंगी। ऐसा हुआ तो गत्ता उद्योगों के लिए कारोबार तो मुश्किल होगा लेकिन पेपर मिलें अपना वजूद बचा पाएंगी। ऐसे में दोनों उद्योग जगत अब मल्टीनेशनल कंपनियों के फैसले के भी इंतजार में हैं। पेपर मिलों की मानें तो दिसंबर 2015 में कबाड़ का रेट 10 रुपए था जो अब अप्रैल 2016 में बढ़ाकर 14 रुपए प्रति किलो हो गया है।
इसके अलावा 100 फीसदी रॉ मैटिरियल का 20 फीसदी हिस्सा प्रोडक्सन के दौरान वेस्ट होता है। पेपर मिल मालिकों की मानें तो उन्हें जो रॉ मैटिरियल 10 रुपए प्रति किलो मिल रहा था वो अब बढ़कर 14 रुपए हो चुका है, ऐसे में पेपर के दाम बढ़ाना उनकी मजबूरी है। इसके अलावा कॉस्टिक जो पांच माह पहले 32 रुपए प्रति किलो था वह अब बढ़कर 46 रुपए प्रति किलो हो चुका है ऐसे में पेपर मीलों का दाम बढ़ाना स्वाभाविक है।
भंडारी पेपर मिल बद्दी के मालिक व हिमाचल के सबसे पुराने उद्यमी दीपक भंडारी ने कहा कि आगामी कुछ दिनों में वह चार रुपए प्रति किलो दाम और बढ़ा सकते हैं। भंडारी ने कहा कि पिछले वर्ष जो रॉ मैटिरियल उन्हें 10 रुपए प्रति किलो प्राप्त हो रहा था उसकी कीमत अब चार रुपए से अधिक बढ़ चुकी है। ऐसे में मुल्य बढ़ाना हमारी मजबूरी है। इस मामले में गत्ता उद्योग व पेपर मिल मालिकों को एक मंच पर एकत्र होकर एमएनसी कंपनियों से लड़ाई लडऩी होगी। मल्टीनेशनल कंपनियों का पैकेजिंग पर मात्र 2 फीसदी खर्च होता है अगर वह इसमें थोड़ा वृद्धि करें तो पेपर मिल और गत्ता उद्योगों को राहत मिल सकती है।
दीपक भंडारी ने कहा कि अगर उन्हें पेपर का अच्छा मूल्य प्राप्त नहीं होगा तो वह प्रोडक्शन कम करेंगे। उन्होंने गत्ता उद्योगों के उस बयान का भी विरोध किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पेपर मीले उनके साथ गुंडागर्दी पर ऊतारू हो गई हैं। पेपर मीले अपना कार्य शांतिपूर्वक कर रही है किसी भी गत्ता उद्योग पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता।