एमबीएम न्यूज़ / धर्मशाला
रिशु कुमार ने अगर उस रोज इक दुखियारी बुजुर्ग महिला के दिल से उठती कराहें न सुनीं होतीं तो अपनों द्वारा ठुकरायी गई लीला देवी शायद जीवन का हौंसला छोड़ देतीं। रिशु ने केवल मुसीबत की मारी अभागी महिला को ही सहारा नहीं दिया, उन्होंने वास्तव में इंसानियत के भरोसे को और मजबूत किया है।
इस वाक्या की शुरूआत करीब दो माह पहले की है, रात के कोई एक बजे होंगे, रिशु कुमार योल आर्मी स्कूल कैंटीन से अपनी डियूटी पूरी कर घर लौट ही रहे थे कि रास्ते में उनकी नजर एक बीमार बुजुर्ग महिला पर पड़ी जो सड़क किनारे बदहवास सी बैठे रो रही थीं। रिशु ठिठक गए, जाकर महिला का हाल पूछा तो पता चला लीला देवी नाम की इस बेबस बुजुर्ग की बीमारी से तंग आकर उनके सगे संबंधियों ने उनसे मुंह फेर लिया है।
लीला देवी के मायके योल में हैं, उनके दो भाई रूई दास और रवि यहीं रहते हैं। पति का स्वर्गवास हो चुका है, उनका बेटा पंजाब में कहीं नौकरी करता है, लीला देवीे बेटे के साथ ही रहती थीं, वहां से आसरा छिना तो मायके आईं, पर यहां भी कोई पनाह देने को तैयार न था। खून के रिश्तों का फीकापन देख कर लीला देवी बुरी तरह टूट चुकी थीं। हालात से लाचार होकर वे आधी रात को योल की सड़क किनारे बैठ अपनी बेबसी पर रो रही थीं कि रिशु फरिश्ता सा बनकर वहां मिल गया।
कूल्हे की हड्डी के फ्रैक्चर की गंभीर समस्या के कारण लीला देवी चलने में लगभग असमर्थ थीं, रिशु कुमार सहारा बन कर लीला देवी को अपने साथ घर ले आए।
32 साल के रिशु का दो कमरे का किराये का मकान भले ही छोटा हो, पर दिल बहुत बड़ा है। घर में उनकी पत्नी भाग्यश्री और उनके दो छोटे बच्चे साथ रहते हैं। पूरा परिवार लीला देवी को घर का सदस्य मानकर सेवा में जुट गया। ईलाज के लिए खूब दौड़भाग भी की। इसमें कोई दो महीने का वक्त गुजर गया। अपनों के सितम से ठेस पाई लीला देवी, कहने को गैर पर सगों से ज्यादा अपनों के यहां रह रहीं थी।
उनके ईलाज पर बड़ा खर्च आना स्वाभाविक ही था, जिसे जेब से तंग होने के बावजूद दिल केे अमीर रिशु के परिवार ने खुशी खुशी उठाया। इसी बीच किसी रोज मानवाधिकार कार्यकर्ता मेघा कल्याण को इस घटना की जानकारी मिली। उन्होंने जिलाधीश कांगड़ा संदीप कुमार के ध्यान में ये सारा मामला लाया।
स्वयं मानवीय संवेदनाओं को बचाने के बड़े पैरोकार जिलाधीश संदीप कुमार ने तुरंत टांडा में लीला देवी के निशुल्क ईलाज की व्यवस्था करवा दी। लीला देवी अब टांडा अस्पताल में उपचाराधीन हैं। रिशु के मानवीय प्रयासों की सराहना करते हुए जिलाधीश ने रैड क्रॉस सोसायटी की ओर से उन्हें 11 हजार रुपए दिए देकर सम्मानित करवाया।
बकौल संदीप कुमार ‘ये घटना सोचने पर मजबूर करती है, लोग किस हद तक अपने तक सीमित होकर खून के रिश्ते तक को नकार रहे हैं। मगर ऐसे में रिशु और भाग्यश्री जैसे भले लोग इंसानियत के दूत बनकर मानवता पर भरोसा को मजबूती देते हैं।
जिलाधीश का कहना है कि प्रशासन बुर्जुगों, असहाय, जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए हर समय उपलब्ध है। लेकिन हम सभी को एक जीवंत समाज के तौर पर अपनी भूमिका पर गहनता से विचार करने और मनुष्य बने रहने के लिए अपने बिसराए आदर्शों की पड़ताल करने और जीवन मूल्यों को बनाए रखने की जरूरत है ।