पावंटा साहिब ( एमबीएम न्यूज़ ): हिमाचल प्रदेश में रोजगार के नाम पर हजारों युवाओं को ठगने का सनसनीखेज़ मामला प्रकाश में आया है। प्रदेश में कार्यरत एक एनजीओ “मिशन रीव” ने पंचायत फैसिलिटेटर नियुक्ति के नाम पर प्रदेश भर की पंचायतों में लगभग 7000 युवाओं को नियुक्त किया था। लेकिन नियुक्ति के 4 माह बाद भी इन युवाओं को वेतन के नाम पर कुछ नहीं दिया गया है। उल्टे इनसे पंचायतों में वित्तिय टारगेट पूरे करने का दबाव डाला जा रहा है। जबकि इतने महीनों से इनसे बतौर पंचायत फैसिलिटेटर क्षेत्र में विभिन्न तरह के काम लिए जा रहे हैं। इन कार्यों के लिए इन पंचायत फैसिलिटेटरों को कोई पैसा नहीं दिया जा रहा है, ना ही इनका वेतन दिया जा रहा है। ऐसे में आक्रोशित हजारों पंचायत फैसिलिटेटरों ने इंसाफ के लिए प्रशासन का दरवाजा खटखटाया है।
पावटा साहिब में रोजगार के नाम पर छले गए सैकड़ों पंचायत फैसिलिटेटर ने बैठक का आयोजन किया। उसके बाद एसडीएम को इस बारे में शिकायत सौंपी गई। इन युवाओं ने बताया कि इस संबंध में एसडीएम सहित उपायुक्त, राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भी शिकायत की जाएगी। उधर एसडीएम एल.आर. वर्मा ने शिकायत मिलने की पुष्टि की और कहा कि मामले में जरूरी जांच के लिए लिखा जाएगा।
प्रदेश के युवा शिक्षित बेरोजगारों के साथ रोजगार के नाम पर ठगी का ये खेल जुलाई 2017 में शुरू हुआ। आईआईआरडी यानी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट ने शिक्षित बेरोजगारों से पंचायत फैसिलिटेटर पद के लिए आवेदन मांगे, इसके लिए बाकायदा साक्षात्कार भी लिए गए। 3 महीने की ट्रेनिंग के नाम पर कुछ नियुक्त युवाओं को उनके कार्य के बारे में भी बताया गया ।इसके बाद तमाम पंचायत फैसिलिटेटर को उनके पंचायत क्षेत्रों में डाटा सहित कई तरह की जानकारियां एकत्र करने के कार्य में लगा दिया गया। 1 माह बीत जाने के बाद जब युवाओं ने वेतन की मांग की तो उन्हें मेंबरशीप के कुछ टारगेट पूरे करने के निर्देश दिए गए और स्पष्ट कह दिया गया यदि टारगेट पूरे नहीं होंगे तो वेतन भी नहीं मिलेगा। जब्कि ज्वाईनिंग से पहले उन्हें इस तरह की कोई बात नहीं बताई गई थी परंतु उसके बाद उन्हें साफ तौर पर कह दिया गया कि प्रत्येक माह 2000 रूपये के 5 सदस्य बनाये जायें तभी 7000 वेतन मिलेगा।
इस बीच सभी पंचायत फैसिलिटेटर लगातार वेतन की मांग करते रहे लेकिन वेतन के नाम पर इन्हें फूटी कौड़ी नहीं मिली। यही नहीं पंचायत फैसिलिटेटर को फील्ड से डाटा एकत्र करने का जो काम दिया गया था उसके लिए भी इन्हें किसी प्रकार का कोई फंड उपलब्ध नहीं कराया गया। पंचायत फैसिलिटेटर ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर डाटा कलेक्शन का कार्य किया।
बार-बार वेतन की मांग करने पर फैसिलिटेटर के साथ आईआईआरडी के एमडी ने मीटिंग भी की लेकिन समाधान नहीं निकला। उल्टे इसमें मीटिंग में पंचायत फैसिलिटेटर को निर्देश दिए गए कि यदि आई कार्ड भी बनवाना है तो पहले 2000 रूपये जमा करवाएं। उसके बाद एनजीओ के सभी अधिकारियों ने उनका फोन तक उठाना बन्द कर दिया और सभी वट्सप ग्रुप भी हटा दिये गये। यहां तक कि कम्पनी ने उन्हें अपाईंट्मेंट लेटर भी ईमेल से भेजा था और बिना पैसे दिये कोई भी अन्य दस्तावेज़ उपलबद्ध कराने से साफ मना कर दिया था। ऐसे में कंपनी द्वारा ठगे गए युवा शिक्षित बेरोजगार प्रशासन के द्वार अपनी गुहार लेकर पहुंचे हैं।
वेतन के मामले में एनजीओ की ना-नुकुर के बाद पंचायत फैसिलिटेटर ने लंबी लड़ाई लड़ने का मन बनाया है। फिलहाल एसडीएम के माध्यम से प्रशासन से शिकायत की गई है लेकिन यदि मामला नहीं सुलझा तो एनजीओ के खिलाफ प्रदेश सरकार का दरवाजा खटखटाया जाएगा और यदि जरूरत पड़ी न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया जाएगा। खुद को ठगा सा महसूस करते हुई शिक्षित बेरोज़गारों ने अपने घर द्वार पर नौकरी और अच्छे वेतन की चाह में इस काम को स्वीकार किया था परंतु “मिशन रीव” एनजीओ के इस बेगानों से रवैये से युवाओं में काफी रोष है। इसके बाद युवा उपायुक्त सिरमौर सहित राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भी इसकी शिकायत करेंगे और अपना हक ना मिलने की सूरत में कम्पनी के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करने से भी परहेज़ नहीं करेंगे।