शिमला (एमबीएम न्यूज): रामपुर उपमंडल के काशा-पाट में आजादी के 69 वर्ष बाद एचआरटीसीकी बस पहुंची थी। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने 31 दिसबंर को इस बात का खुलासा किया था कि इस जोखिमपूर्ण सडक पर बस चलाना आसान नहीं था।
विकट परिस्थितियों की चुनौती का सामना कर बन रही इसी सडक़ पर बुधवार दोपहर उस वक्त बडा हादसा हो गया, जब चार नेपाली मूल के लोगों पर मलबा आ गिरा। स्थिति यह पैदा हो गई कि शाम को अंधेरे की वजह से शवों को नहीं निकाला जा सकता था, क्योंकि मामूली सी चूक भारी पड जाती।
वीरवार सुबह डीएसपी रामपुर के नेतृत्व में पुलिस जवान मौके पर पहुंच गए, ताकि शवों को निकाला जा सकें। स्थानीय लोगों ने भी पुलिस की मदद में हाथ बढ़ाए।
एसपी डीडब्लयू नेगी ने माना कि शवों को निकालना बेहद जोखिमपूर्ण था, क्योंकि यहां तक एक ही जेसीबी पहुंचाई जा सकती थी। साथ ही दरकते पहाड पर भी पैनी नजर रखनी पड रही थी।
सोचिए …..
सुबह होते ही शवों की तलाश शुरू हो गई। मौके पर एक जेसीबी ही काम कर सकती थी। क्योंकि सडक़ बेहद संकीर्ण थी। दूसरी तरफ गहरी खाई। धीरे-धीरे मलबे में से शव निकालने थे तो कुछ लोग इस बात पर पैनी नजर रखे हुए थे कि कहीं दरकती चट्टानों का मलबा जेसीबी मशीन समेत जवानों पर न आ गिरे।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने इस बात का खुलासा किया था कि संकीर्ण सडक़ के एक तरफ गहरी खाई रोंगटे खडे कर देती है। बेहद सावधानी से चले शवों को निकालने के आपरेशन में पुलिस को सवा 11 बजे उस समय कामयाबी मिली जब नेपाली मूल के चार व्यक्तियों के शवों को निकाल लिया गया।
क्या हुआ था?
बुधवार शाम सडक़ के निर्माण में पोकलेन मशीन लगी थी। मलबे को साफ करने के बाद चारों मजदूर मौका देखने गए थे। अचानक ही पहाड़ी से चट्टान टूट कर नीचे आ गिरी। इसमें चारों जिंदा दफन हो गए थे। इनमें नेपाली मूल के आरओसी के 38 वर्षीय चालक अजय, 38 वर्षीय राम बहादुर, 40 वर्षीय लोकेंद्र व 22 वर्षीय हरिंद्र जिंदा दफन हो गए थे।