रोनहाट, 26 सितंबर : शिलाई उपमंडल की रास्त पंचायत में हर आंख नम है। चार मासूम बच्चों के साथ पांच की मौत के बाद परिवार का मुखिया प्रदीप कुमार भी अब दुनिया में नहीं रहा। आईजीएमसी ले जाते वक्त प्रदीप ने दम तोड़ दिया।
सोमवार की शाम मंजर उस समय और दर्दनाक हो गया, जब तीन मासूम बच्चों का मां के साथ एक चिता पर खिजवाड़ी के श्मशानघाट पर अंतिम संस्कार हुआ। हादसे से जुड़ी तस्वीरें विचलित करने वाली हैं। इन्हें आपसे साझा नहीं किया जा सकता। इस घटना के दृश्य की कल्पना मात्र से ही हर कोई सिहर उठेगा।
कुदरत का खेल देखिए, प्रदीप के तीन मासूम बच्चे अमूमन दूसरे गांव में दादा-दादी के पास रहा करते थे, लेकिन रविवार की छुट्टी की वजह से माता-पिता के पास आ गए थे।
रविवार शाम बारिश का दौर जारी होने के कारण वो दादा-दादी के पास नहीं लौट पाए। हादसे में जिंदा बचे अभागे पिता को जिंदगी भर के लिए गहरे जख्म मिले, वो भी इन जख्मों को चंद घंटों तक ही सहन कर पाया। एक बच्ची को जब निकाला गया तो उसकी सांसें चल रही थी। बेहोशी की हालत में वो कह रही थी कि, पापा रोनहाट जाओगे तो मेरे लिए चिप्स व कुरकुरे लेकर आना। विडंबना देखिए, 12 घंटे तक हादसे की खबर किसी को नहीं लगी।
सुबह के वक्त जब एक व्यक्ति वहां से गुजरा तो उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। रविवार रात परिवार इस कारण भी जल्दी सो गया था, क्योंकि तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली ईशिता का चयन खंड स्तर पर लोकनृत्य प्रतियोगिता के लिए हुआ था। ईशिता को सुबह शिलाई भेजना था। इसके लिए परिवार ने बच्ची का जरूरी सामान एक थैले में भरकर रात को ही रख दिया था।
रात के 8 बजे के आसपास आसमान से ऐसी आफत बरती कि पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा मकान के उपर गिर गया। सो रहा परिवार मलबे में दब गया। रात भर परिवार मलबे के नीचे चीख पुकार करता रहा, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। मासूम बच्चे मां के आंचल से लिपट कर मदद का इंतजार करते रहे।
ग्रामीणों ने सबसे पहले परिवार के मुखिया प्रदीप मंगवाण को कड़ी मशक्कत के बाद बाहर निकाला। प्रदीप ने ही पांच अन्य सदस्यों के मलबे में दबे होने की जानकारी दी।
हादसे में परिवार का एक नन्हा बेटा बचा है, क्योंकि वो रविवार रात अपने दादा-दादी के साथ था। मेहमान बनकर आई भांजी भी इस दुनिया से रुखसत हो गई।
रसोई की बजाय…
रसोई की जगह कच्चे मकान में ही परिवार सोया होता तो मासूम जिंदगियां बच जाती। बरसात के कारण कच्चे मकान की छत टपक रही थी। इसीलिए परिवार रसोई घर में सो रहा था। पहाड़ी के साथ बने खेत का एक बड़ा हिस्साा रसोईघर को जमींदोज कर पांच सदस्यों को मौत के आगोश में ले गया। जख्मी प्रदीप ने भी बाद में दम तोड़ दिया।
छुट्टी की वजह से…
प्रदीप कुमार के तीन बच्चे खिजवाड़ी गांव में दादा-दादी के साथ रहते थे। छुट्टी की वजह से माता-पिता को मिलने आ गए। प्रदीप पत्नी के साथ राक्सोडी गांव में इसलिए रहता था कि खेती-बाड़ी का काम होता था। छुट्टी न होती तो मासूम बच्चों का जीवन बच सकता था।
हेली एंबुलेंस क्यों नहीं….
रिमोट इलाकों में घायलों को अस्पताल ले जाते वक्त ही जीवन खोना पड़ता है। इस घटना में भी ऐसा ही हुआ। तत्काल रेस्क्यू करने के बाद अगर प्रदीप कुमार को हेलीकॉप्टर के माध्यम से अगर आईजीएमसी पहुंचा दिया जाता तो जीवन बच सकता था। मलबे से जब एक बच्ची को निकाला गया तो उसकी भी सांसें चल रही थी। हैली एंबुलेंस में टीम अगर मौके पर पहुंचती तो शायद बच्ची भी इस दुनिया में होती। ऐसी घटनाओं को देखकर ही साफ जाहिर होता है कि आपदा प्रबंधन के दावे बेमानी हैं।
कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं….
पुलिस व राजस्व विभाग के कानूनगो व पटवारी के अलावा प्रशासन का कोई अधिकारी घटनास्थल पर नहीं पहुंचा। कुल्लू में रविवार रात टैम्पो ट्रेवलर के हादसे के बाद मुख्यमंत्री सहित पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की भी संवेदनाएं आ गई, लेकिन इस घटना पर दुख तक प्रकट करने की जहमत नहीं उठाई गई।