एमबीएम न्यूज/नाहन
करीब पांच हजार करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके इंडियन टैक्नोमैक घोटाले से हर कोई वाकिफ है, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि आखिर इतना बड़ा घोटाला कैसे पकड़ में आया था। दरअसल आबकारी व कराधान विभाग में जीडी ठाकुर फरवरी 2014 में इकोनॉमी इंटेलीजेंस यूनिट (ईआईयू) के प्रभारी थे
राज्य उप आयुक्त कर के पद पर इस वक़्त तैनात ठाकुर को जब शंका हुई तो इंडियन टैक्नोमैक का रिकॉर्ड खंगालने में लग गए। कच्चे माल व उत्पादन में अंतर पाया गया तो अचानक ही कंपनी के टर्नओवर में उछाल से शक यकीन में बदल गया। इसके अलावा शक इस बात पर भी पैदा हुआ था कि बिजली के बिल कम हैं, जबकि कागजों में उत्पादन बेतहाशा है। तमाम कडि़यों को जोड़कर ठाकुर ने कंपनी पर 2200 करोड़ रुपए का जुर्माना ठोक दिया। विभाग के अधिकारी भी इसे बेकार की कार्रवाई करार देते रहे।
मामला, कानूनी पेचिदगियों में फंसा, लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी विभाग को ही सही ठहराया गया। इसकी वजह थी कि जीडी ठाकुर ने इस मामले को बेहतरीन तरीके से कडि़यां जोड़कर तैयार किया था। मूलतः चंबा के डलहौजी के रहने वाले जीडी ठाकुर का सिरमौर से गत वर्ष तबादला करने की कोशिश भी हुई, लेकिन बाद में सरकार को चुप्पी साधनी पड़ी।
कैसे बने प्रदेश के पहले साइबर लॉ अधिकारी?
महकमे के अधिकारी जीडी ठाकुर ने विश्व के नामी नालसर विश्वविद्यालय ऑफ लॉ हैदराबाद से साइबर लॉ में स्नतकोत्तर डिग्री ली है। 2015-16 के बैच में ठाकुर ने अपनी पढ़ाई की। इसी के बूते ठाकुर प्रदेश के पहले साइबर लॉ अधिकारी बन गए हैं। पुलिस महकमे में भी इस तरह की डिग्री किसी ने नहीं ली है।
इलैक्ट्रॉनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके जीडी ठाकुर को हालांकि साइबर क्राइम में पहले ही महारत थी, लेकिन वह पीजी करने के बाद इसमें निखार लाना चाहते थे। एमबीएम न्यूज से बातचीत के दौरान जीडी ठाकुर ने माना कि कंप्यूटर के जरिए ही अब तक टैक्स चोरी के बड़े मामले पकड़ चुके हैं। उन्होंने यह भी माना कि इंडियन टैक्नोमैक की अनियमितताओं को लेकर इतना मजबूत केस बनाया गया था कि कंपनी को सुप्रीम कोर्ट तक से राहत नहीं मिली।