एमबीएम न्यूज़/नाहन
यह एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जिसके पिता ने अपना जीवन संघर्ष में बिताया। मगर अपने बेटे को उसका कैरियर चुनने में उसे पूर्णत: स्वतंत्रता दी। कभी अपने प्रोफेशन को या पढाई को लेकर बेटे पर उसे थोपने का प्रयास नहीं किया। जी हाँ, हम बात कर रहे है कोलर गांव के प्रवासी भारतीय रोहन कुंडलस की। जिसने पहले कनाडा की अंडर-19 टीम में स्थान बनाया। लगभग दो साल कनाडा की टीम की और से श्रीलंका, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड में कनाडा का प्रतिनिधित्व किया।
हाल ही में रोहन को अमेरिका के होस्टन में आयोजित अमेरिकन कॉलेज क्रिकेट प्रतियोगिता में कनाडा का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। यह टूर्नामेंट 20-20 हर साल अमेरिका आयोजित करता है। रोहन के पिता वीरेंद्र कुंडलस को भी क्रिकेट का तगड़ा जुनून था, मगर आर्थिक स्थिति व कैरियर के कारण वह क्रिकेट को अपना प्रोफेशन नहीं बना सके। उनके संघर्ष की कहानी बड़ी लंबी है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्हें ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली में पहली नौकरी मिली। कुछ वर्ष नौकरी करने के बाद 90 दशक के अंत में वो कनाडा चले गए। जहां उन्होंने लंबे संघर्ष के बाद वीआर इंडस्ट्रियल एयरकोन कंपनी की स्थापना की।
पूरे उत्तरी अमेरिका के साथ लेटिन अमेरिका में उन्होंने अपने कारोबार को फैलाया। लड़के का शोक क्रिकेट था। जिसको लेकर पिता ने उसे पूरी तरह सहयोग दिया। कभी खुद फटे पैड और टूटे-फूटे बैट से खेलने को मजबूर वीरेंद्र ने बेटे को हर वो सहूलियत दी जो एक खिलाडी को चाहिए होती है। रोहन ने भी पिता की दी छूट को व्यर्थ नहीं जाने दिया। दो बार राष्ट्रीय टीम में चयनित होकर पिता के सपनो को पंख लगाए।
रोहन को ऑल राउंडर के रूप में जल्द ही कनाडा की सीनियर राष्ट्रीय टीम में स्थान मिलने वाला है। वह राष्ट्रीय टीम में आने की दहलीज पर खड़े है। रोहन का कहना है कि माँ-बाप को बच्चों पर कुछ थोपना नहीं चाहिए। बच्चों को चाहिए कि वे माँ-बाप की छूट का नाजायज फायदा न उठा कर उनकी आकांक्षाओं पर खरे उतरे।