शिमला, 18 मई : वर्ष 2012 में डिलिमिटेशन (delimitation) के बाद नादौनता से नाम बदल कर बनी बड़सर विधानसभा में इंद्रदत्त लखनपाल ने इसे कांग्रेस का गढ़ बना दिया। उन्होंने यहां लगातार जीत की हैट्रिक (hat trick) लगाई। 2012 से पहले यहां कांग्रेस के दो नेताओं अरविंदर डोगरा व राजेंद्र जार के आपसी द्वंद से यह सीट लंबे समय तक भाजपा के कब्जे में रही।
लखनपाल को अचानक लगा कि उनकी विधानसभा के साथ मुख्यमंत्री अन्याय कर रहे हैं। उनकी वरिष्ठता को भी नजर अंदाज किया जा रहा है। इसके चलते उन्होंने पार्टी से विद्रोह कर दिया। अब वह भाजपा के टिकट पर विधानसभा उप चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी यहां जमीन से जुड़े कांग्रेसी कार्यकर्ता सुभाष चंद ढटवालिया को पार्टी उम्मीदवार बनाया है।
सुभाष ठेकेदारी पेशे से जुड़े होने के साथ-साथ स्टोन क्रशर व्यवसायी हैं। वह पंचायतीराज संस्थाओं में कई चुनाव जीत चुके हैं। जिनमें जिला परिषद सदस्य, बीडीसी सदस्य, पंचायत प्रधान तक का सफर उन्होंने तय किया है। सुभाष का संबंध राजपूत समुदाय से है। वहीं, आईडी लखनपाल ब्राह्मण बिरादरी से आते हैं। बड़सर विधानसभा में 2012 से पहले व बाद अधिकतर ब्राह्मण उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। लखनपाल से पहले भाजपा के बलदेव शर्मा यहां लगातार दो बार विधायक रहे। 2012 में उन्हें इंद्रदत्त लखनपाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा इस विधानसभा में अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों पर भी लखनपाल ने काफी हद तक कब्जा किया। परिस्थितियां बदलने के बाद लखनपाल को भाजपा संगठन दिल से सहयोग करता है या नहीं, यह अभी तक भविष्य के गर्भ में है।
वहीं, ब्राह्मण समुदाय से उन्हें पहले की तरह ही भरपूर समर्थन मिलने की उम्मीद है। वहीं नए प्रत्याशी सुभाष डटवालिया पहले लखनपाल के सहयोगी के रूप में कांग्रेस में कार्य करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव भी साथ ही हो रहा है, जिसका प्रभाव इन दोनों के चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है। सुभाष जिस ढटवाल क्षेत्र से आते हैं, यहां कांग्रेस व भाजपा दोनों का कैडर वोट लगभग बराबर ही है। सांसद अनुराग ठाकुर अगर राजपूत समुदाय के अपने समर्थकों को लखनपाल के पक्ष में मोड़ पाए तो उनकी चुनावी राह आसान हो सकती है। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार सुभाष को जिताने का जिम्मा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उठा रखा है।
अगर लखनपाल चुनाव जीतने में सफल हुए तो यह मुख्यमंत्री सुक्खू के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, अगर सुभाष चुनाव जीते तो लखनपाल की लगातार तीन जीत के बाद उनकी सफलता पर विराम लग सकता है। मुकाबला कांटे का है। दोनों उम्मीदवार चुनावी मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं। देखना है कि कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा सेंध लगा पाएगी या कांग्रेस अपने गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाएगी।