सुन्दरनगर (नितेश सैनी) : आज हम आपको एक ऐसी झील के बारे में बताने जा रहे है जिसके बारे में कहा जाता है की उसमे अरबो रुपए का खजाना दफन है यह है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ो में स्थित कमरुनाग झील। पूरे साल में 14 और 15 जून को यानी देसी महीने के हिसाब से एक तारीख और हिमाचली भाषा में साजा। गर्मियों के इन दो दिनों में बाबा कमरुनाग पूरी दुनिया को दर्शन देते है। इसलिए लोगों का यहां जन सैलाब पहले ही उमड पड़ता है। क्योंकि बाबा घाटी के सबसे बड़े देवता हैं और हर मन्नत पूरी करते हैं। हिमाचल प्रदेश के मण्डी से लगभग 60 किलोमीटर दूर आता है रोहांडा, यहीं से पैदल यात्रा शुरु होती है। कठिन पहाड़ चढ़कर घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह लगभग 8 किलोमीटर चलना पड़ता है। मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरुनाग झील के नाम से जाना जाता है। यहां पर लगने वाले मेले में हर साल भक्तों की काफी भीड़ जुटती है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त झील में सोने-चांदी के गहनें तथा पैसे डालते हैं।
सदियों से चली आ रही इस परम्परा के आधार पर यह माना जाता है कि इस झील के गर्त में अरबों का खजाना दबा पड़ा है। देव कमरुनाग को वर्षा का देव माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार भगवान कमरुनाग को सोने-चांदी व पैसे चढ़ाने की प्राचीन मान्यता है। यहां जून में लगने वाले मेले के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा झील में सोने-चांदी के गहनों को अर्पित करते हुए देखा जा सकता है। स्थानीय लोगों की मानें तो सदियों से चली आ रही इस परंपरा के आधार पर यह माना जाता है कि झील के गर्त में काफी बड़ा खजाना दबा हुआ है। कमरुनाग में लोहड़ी पर भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है।
कमरुनाग जी का जिक्र महाभारत में भी आता है। इन्हें बबरुभान जी के नाम से भी जाना जाता था। ये धरती के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। लेकिन कृष्ण नीति से हार गए। इन्होने कहा था कि कौरवो और पांडवों का युद्ध देखेंगे और जो सेना हारने लगेगी मै उसका साथ दूंगा । लेकिन भगवान् कृष्ण भी डर गए कि इस तरह अगर इन्होने कौरवो का साथ दे दिया तो पाण्डव जीत नहीं पायेंगे। कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हे हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरुनाग जी ने एक ख्वाइश जाहिर की कि वे महाभारत का युद्ध देखेंगे। इसलिए भगवान् कृष्ण ने इनके काटे हुए सिर को हिमालय के एक ऊँचे शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस तरफ इनका सिर घूमता वह सेना जीत की ओर बढ्ने लगती। तब भगवान कृष्ण जी ने सिर को एक पत्थर से बाँध कर इन्हे पांडवों की तरफ घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड कर एक झील बना दी। यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढ़ाने से मन्नत पूरी होती है। लोग अपने शरीर का कोई भी गहना यहाँ चढ़ा देते हैं। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना – चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओ का होता है। ये भी मान्यता है कि ये झील सीधे पाताल तक जाती है। इस में देवताओ का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन् दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड जाती है। यहाँ से कोई भी इस खज़ाने को चुरा नही सकता। क्योंकि माना जाता है कि कमरुनाग के खामोश प्रहरी इसकी रक्षा करते हैं। एक नाग की तरह दिखने वाला पेड इस पहाड के चारों ओर है। जिसके बारे मे कहते हैं कि ये नाग देवता अपने असली रुप में आ जाता है। अगर कोई इस झील के खजाने को हाथ भी लगाए। कमरुनाग झील में खोए हुए खजाने की कहानी हमेशा इंसान को रोमांचित करती आई हैं। कई लोगों ने तो अपना पूरा जीवन खजाने की खोज में बिता दिया।
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कमरुनाग झील का खजाना
हिमाचल प्रदेश के मंडी से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है कमरुनाग झील। स्थानीय लोग इस झील को पवित्र मानते हैं और उनका भरोसा है कि इस झील का अंत पाताल में होता है। ऐसी मान्यता है कि झील में गहने अर्पित करने से मनोकामना पूरी होती है। दूर दूर से लोग आकर गहने झील में डालते हैं और मनोकामना मांगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह झील महाभारत कालीन है। यहां एक मंदिर है जो लकड़ी का बना है और इसमें कमरुनाग की एक पुरानी मूर्ति भी रखी है। सदियों से इस झील में गहने और रुपये आदि चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। ये तो साफ है कि झील की तलहटी में खजाना है लेकिन कितना ये कोई नहीं जानता।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का खजाना
ऐसा माना जाता है कि एक लाख करोड़ का खजाना अभी तक पद्मनाभ स्वामी मंदिर से निकाला जा चुका है और इससे भी अधिक खजाना वहां के तहखानों में दबा हुआ है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक 10वीं शताब्दी में इस मंदिर को बनवाया गया था। कहीं कहीं ऐसा भी जिक्र है कि मंदिर को 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था। त्रावणकोर के शासकों ने अपना राज्य भगवान को समर्पित कर दिया। मंदिर से भगवान विष्णु की जो मूर्ति मिली है वो शालिग्राम की बनी हुई है। इस मंदिर पर कभी कोई विदेश हमला नहीं हुआ। 1790 में टीपू सुल्तान ने ऐसा प्रयास तो किया लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाए। 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के पांच तहखाने खोले गए जिनमें से एक लाख करोड़ की संपत्ति निकली। लेकिन एक तहखाना अभी बंद है और माना जा रहा है कि इसमें बेहद अनमोल चीजें हो सकती हैं।
गोलकुंडा चारमीनार का खजाना
ऐसा माना जाता है कि सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने गोलकुंडा किले और चारमीनार के बीच 15 फुट चौड़ी और 30 फुट ऊंची भूमिगत सुरंग बनवाई थी। कहा जाता है कि इस सुरंग में शाही परिवार ने अपना शाही खजाना छुपाया था। कई लोग दावा करते हैं कि ये खजाना आज भी यहीं मौजूद है। माना जाता है कि वैसे सुरंत को मुश्किल वक्त पर जान बचाने के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल खजाने को छुपाने के लिए किया गया। 1936 में निजाम मीर ओसमान अली ने एक नक्शा बनवाया था लेकिन खुदाई नहीं कराई गई। अभी भी कई लोग मानते हैं कि ये खजाना ढूंढने पर मिल सकता है।
मान सिंह प्रथम का खजाना
मान सिंह अकबर का सेनापति था। ऐसा कहा जाता है कि करीब 1580 में मान सिंह ने अफगानिस्तान को जीत लिया था। वहां से वह मुहम्मद गजनी के खजाने को लेकर भारत तो आ गए लेकिन इस बारे में उन्होंने अकबर को नहीं बताया। इस खजाने को उन्होंने जयगढ़ के किले में दफन कर दिया। ऐसी मान्यता है कि 1976 में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी भी इस खजाने की तलाश में थीं। कई लोग दावा करते हैं कि कई महीनों तक महल में खुदाई की गई। इन दावों के मुताबिक कई फौजी ट्रकों के जरिए इस खजाने को दिल्ली ले जाया गया। इस दौरान दिल्ली जयपुर हाइवे को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया। एक अन्य कहानी के मुताबिक जोधा ने इस खजाने को फतेहपुर सीकरी के एक मंदिर में रखवा दिया था लेकिन वक्त के साथ मंदिर और खजाना दोनों कहानियों में खो गए।
बिहार के राजगीर का खजाना
खजाने की एक कहानी बिहार से भी है। माना जाता है कि बिहार के राजगीर की सोनगुफा में बेशुमार सोना दफन है। इस जगह के बारे में सही सही जानकारी तो नहीं मिलती लेकिन किदवंती है कि यहां भीम ने जरासंध का वध किया था। काफी वक्त तक यह जगह मगध साम्राज्य के अधीन रही। बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों के लोग यहां की गुफाओं को पवित्र बताते हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक ये गुफाएं तीसरी-चौथी शताब्दी की हैं। सरकारी शिलालेखों के मुताबिक यहां रथ के पहियों और शंख भाषा में लिखे कुछ अंश मिले थे। ऐसा कहा जाता है कि खजाना अजातशत्रु को ना मिल जाए इसलिए बिम्बिसार ने खजाने को गुफाओं की भूलभुलैया में दबा दिया। इन्ही कहानियों को सुनने के बाद अंग्रेजों ने भी गुफा को तोप से उड़ाने की कोशिश की थी लेकिन असफल रहे। यहां से जो मूर्ति मिली थी वह नालंदा संग्रहालय में रखी है।
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