नाहन, 19 मई : हिंदू धर्म में एकादशी के दिन की काफी मान्यता मानी जाती है। इसी तरह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी को भी ख़ास माना जाता हैं। यह तिथि सब पापों को हरने वाली है। इस दिन व्रत करने से मनुष्य मोहजाल व पातक समूह से मुक्ति पाता हैं। विष्णु भगवान का मोहिनी रूप शक्ति व बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन व्रत करने से वर्षों की तपस्या का पुण्य प्राप्त होता है और गोदान का भी लाभ मिलता है।
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मोहिनी एकादशी से जुड़ी कथा
सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुंदर नगरी में धृतिमान नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में एक धनपाल नाम का वैश्य रहता था जो धन धान्य से परिपूर्ण था। वह सारा समय पुण्य कर्म में लगा रहता था। दूसरों के लिए कुआं, मठ, बगीचा, पोखरा व घर बनवाया करता था। भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था। उसके पांच पुत्र थे सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत व धृष्ट्बुद्धि।
धृष्ट्बुद्धि पांचवा था। वह सदा बड़े-बड़े पापों में संलग्न रहता था। जुए आदि में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। और अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बर्बाद किया करता था। एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर-दर भटकने लगा। इसी प्रकार भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम में पहुंचा। वह महर्षि कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ कर बोला ‘ब्राह्मण मुझ पर दया करे और कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।
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कौण्डिन्य बोले वैशाख के शुक्ल पक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। जिससे प्राणियों के अनेक जन्मों के किए हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। मुनि का यह वचन सुनकर धृष्ट्बुद्धि प्रसन्न हो गया। उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया। और वह निष्पाप हो गया। दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्री विष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार ‘मोहिनी एकादशी ‘ का व्रत बहुत ही उत्तम माना जाता है। इसका पाठ करने व सुनने से गोदान का फल मिलता है।
पूजा विधि
मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दशमी तिथि को सूर्यास्त से पहले घर की सफाई कर एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर पूजा को शुरू किया जाता है। कलश की स्थापना कर व्रत कथा का पाठ किया जाता है। भजन, कीर्तन व हरी स्मरण करने से अच्छा फल प्राप्त होता है। किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन करा उन्हें दान दक्षिणा दी जाती है।