नाहन (एमबीएम न्यूज): सिरमौर जिला के गिरिपार क्षे़त्र की एक सौ से अधिक पंचायतों में कालांतर से बूढ़ी दिवाली मनाए जाने की एक अनूठी परंपरा है। कुछ क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली को मशराली के नाम से मनाया जाता है। दिवाली के एक मास उपरांत अर्थात अमावस्या की रात को गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली को बड़े हर्षोल्लास एवं पारंपरिक तरीके के साथ मनाए जाने की परंपरा बदलते परिवेश के बावजूद भी प्रचलित है। इसके अतिरिक्त सिरमौर जिला के साथ लगते शिमला जिला के कुछ गांव और उतराखंड के जौनसार क्षेत्र व कूल्लू जिला के निरमंड में भी बूढ़़ी दिवाली पर्व को बडे़ धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
बूढ़ी दिवाली को लेकर जनश्रुतियां
कुछ वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार इस क्षेत्र में भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीना देरी से मिली थी, जिस कारण इस क्षेत्र के लोग अन्य क्षेत्रों की बजाए एक महीना बाद दिवाली की परंपरा का निर्वहन करते है और कुछ लोग इस पर्व को बलिराज के दहन की पारंपरिक प्रथा से जोड़ा जाता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस क्षेत्र के लोग मुख्य दिवाली पर्व को भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते है, परंतु बूढ़़ी दिवाली मनाने बारे लोगों में एक अलग ही उत्साह और अंदाज देखा गया है जिसका शब्दों में उल्लेख नहीं किया जा सकता है। गिरिपार के विभिन्न गांवों के लोगों से की गई चर्चा के अनुसार प्रत्येक गांव में बूढ़ी दिवाली को अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है, परंतु समान्यता हर गांव में बूढ़ी दिवाली के अवसर पर बलिराज के दहन की प्रथा प्रचलित है।
विशेषकर कौरव वंशज के लोगों द्वारा अमावस्या की आधी रात में पूरे गांव की मशाल के साथ परिक्रमा करके एक भव्य जलूस निकाला जाता है और बाद में गांव के सामूहिक स्थल पर एकत्रित घास, फूस और मक्की के टांडे में अग्नि देकर बलिराज दहन की परंपरा निभाई जाती है, जबकि पाण्डव वंशज के लोग प्रात: ब्रम्हमुहूर्त में बलिराज का दहन करते है। लोगों का विश्वास है कि अमावस्या की रात को मशाल जलूस निकालने से क्षेत्र में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और गांव में समृृद्धि के द्वार खुलते है।
बूढ़़ी त्यौहार के उपलक्ष्य पर लोगों द्वारा पारंपरिक व्यंजन बनाने के अतिरिक्त आपस में सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली, अखरोट वितरित करके दिवाली की शुभकामनाएं दी जाती है। इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों द्वारा हारूल गीतों की ताल पर किया गया लोक नृृत्य सबसे आकर्षण का केन्द्र होता है। लोग इस त्यौहार पर अपनी बेटियों व बहनों को विशेष रूप से आमंत्रित करते है। इसके अतिरिक्त लोगों द्वारा परोकड़िया गीत, विरह गीत भयूरी, रासा, नाटियां, स्वांग के साथ-साथ हुड़क नृृत्य करके जश्न मनाया जाता है।
कुछ गांवों में बूढ़ी दिवाली के त्यौहार पर बढ़ेचू नृत्य करने की परंपरा भी है जबकि कुछ गांव में अर्ध रात्रि के समय एक समुदाय के लोगों द्वारा बुडियात नृृत्य करके देव परंपरा को निभाया जाता है। जिस प्रकार वर्तमान में प्राचीन परंपराएं विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में कहा जा सकता है कि आधुनिकता के दौर में सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र अपनी प्राचीन परंपराओं को बखूबी संजोए हुए है। इन परंपराओं के निर्वहन से न केवल लोगों मे आपसी भाईचारा व पारस्परिक सहयोग की भावना उत्पन्न होती है बल्कि पुरातन संस्कृति के संरक्षण को बल मिलता है।