कांगड़ा (रीना शर्मा): दुनिया भर में मां ज्वालामुखी मंदिर विशेष पहचान रखता है। कुदरती तौर पर प्रज्जवलित मां की जोत हैरान करती है। मां ज्वाला जी अपने भक्तों की मुरादें पूरी करती है, लेकिन ओएनजीसी(तेल व प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड) की एक मुराद अब तक पूरी नहीं हो पा रही, क्योंकि आज भी यह रहस्य है कि मां की जोत अनवरत कैसे प्रज्जवलित रहती है।
बहरहाल ओएनजीसी ने मुराद पूरी होने की उम्मीद में हाल ही में फिर तेल व गैस के संभावित भंडारों को ढूंढने के लिए ज्वाला जी में डेरा डाला है। युद्धस्तर पर काम शुरू हो चुका है। दरअसल पहले भी यहां जांच हो चुकी है। र्इंंधन का स्त्रोत ढूंढने की कोशिश हुई। 1962 के बाद तमाम कोशिशें नाकाम रही। उम्मीद की जाती हैं कि धरती के गर्भ में तेल या गैस का भंडार है, जिसकी वजह से मां की जोत अनवरत प्रज्जवलित रहती है। ज्वाला जी की सुरानी पंचायत में फिर कार्य शुरू हुआ है। इससे पहले बग्गी व टिहरी में खुदाई हो चुकी है।
स्थानीय निवासी संजय राणा, प्रवीण सिंह, त्रिलोक सिंह व नरेद्र सिंह आदि ने बताया कि 40 कनाल भूमि को लीज पर दे दिया गया है। चंगर क्षेत्र में तेल की अपार संभावना है। यही वजह है कि इस क्षेत्र के 6 किलोमीटर दायरे में सातवीं बार प्रयास किया जा रहा है। सुरानी में ही मात्र 300 मीटर दायरे में पांचवी कोशिश की जा रही है। सनद रहे कि ओएनजीसी द्वारा जम्मू व हिमाचल में नियमित रूप से ड्रिलिंग की जा रही है, लेकिन भंडार नहीं मिला है। ज्वाला जी से पहले ओएनजीसी ने सोलन के कसौली विकास खंड में पांच हजार मीटर गहरी खुदाई की थी।
देखिये, माँ की अनवरत जलती जोत :
विशेषज्ञों के मुताबिक एक खंड की खुदाई पर लगभग 100 करोड़ की राशि खर्च होती है। प्रदेश जियोलॉजिस्ट रजनीश शर्मा का कहना है कि तेल व गैस के प्राकृतिक भंडारों का पता लगाने के लिए ओएनजीसी को कुओं की खुदाई करने की मंजूरी दी गई है। हालांकि एक तर्क यह भी है कि ऊर्जा के स्त्रोत का सही पता उस सूरत में लग सकता है, जब मंदिर से ही जांच शुरू की जाए।
चूंकि मामला धार्मिक आस्था से जुड़ा है, लिहाजा इस दिशा में कदम नहीं उठाया जा सकता। वैज्ञानिकों के तर्क के मुताबिक प्राकृतिक गैस अमूमन उस स्थान पर होती है, जहां पर खनिज तेल होता है। बहरहाल ओएनजीसी का कार्य जारी है।