मंडी (वी.कुमार) : आए दिन सवालों के घेरे में घिरते जा रहे लोक निर्माण विभाग का एक ऐसा कारनामा सामने आया है जिसने करीब 60 परिवारों को सकते में डाल दिया है। विभाग ने सड़क निर्माण के लिए पहले जमीन का अधिग्रहण किया और अब जमीन के बदले दिए गए मुआवजे को वापिस मांगा जा रहा है। 60 परिवारों को मुआवजा वापिस देने के लिए तहसीलदार के पास पेशियां भुगतने के लिए हर महीने आना पड़ रहा है।
सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाला विभाग, यानी लोक निर्माण विभाग। इस विभाग ने अपनी प्राथमिकता की ऐसी मिसाल पेश की है जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। मामला मंडी जिला के सरकाघाट उपमंडल की ग्राम पंचायत भांवला का है। वर्ष 2008-09 में यहां से गुजरने वाली कलखर-जाहू-उना सड़क को सुपर हाईवे में परिवर्तित करने का कार्य शुरू हुआ। जाहिर सी बात है कि सड़क को चौड़ा करने के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता थी। इसलिए विभाग ने लोगों की जमीनों का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया। प्रति प्रभावित को 27 हजार रूपए प्रति बिस्वा की दर से मुआवजा दिया गया। प्रभावित किशोर ठाकुर के अनुसार यह सारी प्रक्रिया संपन्न करवाने के लिए खुद विभाग के अधिकारी घर आए थे और मुआवजा मिल बैठ कर तय किया गया था। लेकिन सड़क निर्माण के 6 वर्षों के बाद अचानक विभाग को याद आया कि यहां का मुआवजा तो वर्ष 1958 में ही दे दिया गया था जिस वक्त सिंगल रोड़ का निर्माण हुआ था। इसके बाद विभाग ने नोटिस भेजकर मुआवजा मांगना शुरू कर दिया और प्रभावित परिवारों की तहसीलदार रिकवरी के पास पेशियां लगा दी।
प्रभावितों के अनुसार लोक निर्माण विभाग ने मर्जी से जमीन का अधिग्रहण किया और उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं दी गई कि उनकी कितनी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। प्रभावितों का कहना है कि उन्हें उनकी जमीनों के उस वक्त की कम दाम दिए गए थे। इसलिए प्रभावितों ने उल्टा ज्यादा मुआवजा मांगना शुरू कर दिया है और सरकार से पूरे मामले में हस्तक्षेप करने की मांग उठाई है। प्रभावितों को जो मुआवजा मिला था उन्होंने उन पैसों को अपनी जरूरतों के मुताबिक कबका खर्च कर दिया है।
वहीं जब इस बारे में डीसी मंडी संदीप कदम से बात की गई तो उन्होंने माना कि इस प्रकार का मामला प्रशासन के ध्यान में आया है। उन्होंने बताया कि मामले की पूरी जांच पड़ताल की जा रही है और जल्द की इसका कोई समाधान निकाल लिया जाएगा।
अब इस पूरे मामले पर सरकारी स्तर पर ही कोई निर्णय लिया जा सकता है। क्योंकि विभाग ने जो गलती की है उसका खामियाजा करीब 60 परिवारों को भुगतना पड़ रहा है। अगर सरकार इसमें हस्तक्षेप करती है तो ही इन 60 परिवारों को राहत मिल सकती है। अन्यथा इन्हें इसी प्रकार से हर महीने पेशियां भुगतने के लिए कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ेंगे।