नाहन, 25 मई : पांवटा साहिब में चंद माह पहले राजकुमार रिक्शा चला रहा था…अचानक ही आंखों के सामने अंधेरा छा गया। रिक्शा सड़क किनारे टकरा गई। हरियाणा (Haryana) के खिदराबाद में बूढ़ी मां का गुजर-बसर राजकुमार की कमाई से ही चल रहा था। पत्नी की मौत पहले ही हो चुकी थी। संतान नहीं है।
आंखों की रोशनी चले जाने से राजकुमार रिक्शा नहीं चला सकता था। अधेड़ उम्र के बेबस राजकुमार के सामने विश्वकर्मा मंदिर के बाहर भीख मांगने (Begging) के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचा। भीख मांगने के बाद मंदिर में रह रहे बाबा के साथ सो जाया करता था। अचानक ही एक महिला ने राजकुमार को 10 रुपए दिए, लेकिन वो हाथ को इधर-उधर कर रहा था। महिला समझ गई कि भीख मांगने वाले को दिखाई नहीं देता है। महिला के जरिए ये सूचना समाजसेवी (Social Worker) व पत्रकार संजय कंवर तक पहुंच गई।
4 मई को एक मसीहा के तौर पर राजकुमार को संजय कंवर मिल गए। यहीं से राजकुमार के जीवन से अंधकार छंटने की उम्मीद बंध गई। संजय ने पहले स्थानीय अस्पताल में चैकअप करवाया। सफलता नहीं मिली तो संजय ने हरियाणा के यमुनानगर में ‘नी आसरे दा आसरा’ आश्रम में संपर्क किया। यहां दूसरे मसीहा के तौर पर राजकुमार को जसकीरत सिंह मिल गए। यकीन मानिए, चंद रोज पहले सफल ऑपरेशन के बाद एक गरीब बूढ़ी मां के इकलौते बेटे की आंखों की रोशनी लौट आई है। आंखों की रोशनी लौटने के बाद राजकुमार जसकीरत सिंह के पांव छूकर आभार प्रकट करते नजर आए।
बता दें कि 5 मई को संजय कंवर ने ही राजकुमार को अपने निजी वाहन में आश्रम तक पहुंचाया था। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर तिमारदारी में भी अहम भूमिका निभाई थी। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में पत्रकार व समाजसेवी संजय कंवर ने कहा कि अपने लिए तो सब जीते हैं, दूसरो के जीवन में बदलाव लाकर जो सुकून मिलता है, उससे बड़ी पूंजी कोई हो ही नहीं सकती।
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उल्लेखनीय ये भी है कि संजय कंवर बेजुबान पशुओं व बेबस गरीबों की मदद का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं। ताजा मामले में मानवीय सेवा का अनुकरणीय उदाहरण पेश कर संजय ने समूचे समाज के लिए एक मिसाल कायम की है।
इसी बीच ‘नी आसरे दा आसरा’ के जसकीरत सिंह ने कहा कि राजकुमार की बूढ़ी मां को भी आश्रम में आने की पेशकश की गई थी, लेकिन वो तैयार नहीं हुई। उन्होंने कहा कि आश्रम दुखियारों की मदद को हमेशा ही तत्पर रहता है।
@R1