नाहन, 23 मई : हिमाचल प्रदेश के रेणुका वन्यजीव रेंज (Renuka Ji Wild Life) में पहली बार रामसर वेटलैंड स्थल पर लुप्तप्राय चित्तीदार तालाब कछुआ (Black pond turtle) देखा गया है। यह खोज न केवल क्षेत्र की जैव विविधता (Biodiversity) के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि इस प्रजाति के संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा मिल सकती है।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सबसे बड़ी कुदरती झील श्री रेणुका जी “कछुओं” को लेकर विशेष पहचान रखती है। लेकिन,कछुआ की लुप्तप्राय प्रजाति (endangered species of turtle) मिलना बेहद सुखद अनुभव है। इस प्रजाति की पहचान उनके काले सिर, पैर और पूंछ पर पीले या सफेद धब्बों से की जाती है। समूचे राज्य में “सिरमौर” ही है, जहां हाल ही के सालों में साल के जंगलों में “किंग कोबरा व टाइगर” (King Cobra & Tiger) साईट हुए है। किंग कोबरा व टाइगर भी सिरमौर में ही अब तक रिकॉर्ड हुए हैं, ये भी अपनी तरह का रिकॉर्ड है। इसके अलावा हाथियों का भी दून घाटी (Doon Valley) स्थाई ठिकाना बन गई है।
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बता दें कि ब्लैक पॉन्ड टर्टल (Black pond turtle) की ठिकाने व किंग कोबरा-टाइगर-हाथियों के आशियाने के बीच 10-40 किलोमीटर का फैसला हो सकता है।
रेणुका जी झील हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील(Natural Lake) है,इसे एक महत्वपूर्ण रामसर वेटलैंड (Ramsar Wetland) के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस झील का पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न जलीय प्रजातियों (aquatic species) के लिए एक महत्वपूर्ण आवास प्रदान करता है। चित्तीदार तालाब कछुआ (spotted pond turtle) की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि झील का पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ है, यहां की जैव विविधता संरक्षित है।
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याद दिला दें, जुलाई 2013 में श्री रेणुका जी में बेबी टर्टल्स की हैचिंग भी हुई थी। विभाग के परिसर में ही कछुओं (Turtle) के 35 अंडे (Eggs) संरक्षित किये गए थे। लेकिन अफ़सोस (regret) की बात यह है कि बाद में इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। विशेषज्ञों के मुताबिक चित्तीदार कछुआ, जिसे हैमिल्टन का टेरापिन (hamilton’s terrapin) भी कहा जाता है, सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र की जल निकासी घाटियों में स्थिर मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्रों में पाया जाता है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कछुआ जल निकायों (Water Bodies) के महत्वपूर्ण सफाई कर्मी होते हैं। वे पानी की गुणवत्ता (Water Quality) को बनाए रखने में मदद करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता में योगदान देते हैं। रेणुका जी झील में इस विविधता की उपस्थिति से झील के स्वास्थ्य का पता चलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यहां का जल और पर्यावरणीय वातावरण कछुओं सहित अन्य जलीय प्रजातियों के लिए अनुकूल हैं।
रेणुका जी झील में इस प्रजाति की खोज से यह भी स्पष्ट होता है कि इस प्रजाति की आबादी की स्थिति और खतरों का आकलन करने के लिए व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। इस अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि इन कछुओं की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है और उनके आवास को कैसे संरक्षित किया जा सकता है।
उपमुख्य अरण्यपाल (वन्य प्राणी) शहनबाज अहमद भट्ट ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत में कहा कि यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश में इससे पहले नहीं देखी गई थी और यह प्रदेश में पहला रिकॉर्ड है। हालांकि रेणुका झील भारत के रामसर आर्द्रभूमि में सबसे छोटी है, लेकिन यह कई अन्य कछुओं की प्रजातियों जैसे लुप्तप्राय भारतीय सॉफ्टशेल कछुए, भारतीय छत वाले कछुए के साथ-साथ भारतीय काले कछुआ और भारतीय फ्लैपशेल कछुए के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है। उन्होंने कहा कि कछुओं को “जलीय मृतभक्षी” भी कहते हैं, इसलिए रेणुका झील में इनकी यह विविधता, जलाशय के समग्र स्वास्थ्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
बहरहाल, चित्तीदार तालाब कछुए की खोज हिमाचल प्रदेश के वन्यजीव संरक्षण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह खोज न केवल इस क्षेत्र की जैव विविधता को समृद्ध करती है, बल्कि रेणुका झील के पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) के बेहतर होने को भी प्रमाणित करती है।