कांगड़ा, 13 अप्रैल : आज चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन है। यानी आज मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। माता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। कार्तिकेय की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। तो आइए स्कंदमाता का नाम लेकर हम आपको शक्तिपीठ श्री चामुंडा देवी की ओर ले चलें।
जानिए क्या है मंदिर का इतिहास
शक्तिपीठ चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। उत्तर भारत की नौ देवियों में दूसरा दर्शन मां चामुण्डा देवी का किया जाता है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। चामुण्डा देवी मंदिर माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति व संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवों का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ा था। मान्यता यह भी है कि माता सती की देह के भाग करने पर माता के चरणों का कुछ अंश चामुंडा देवी में गिरा था, जिसके बाद यहां चामुंडा शक्तिपीठ का निर्माण करवाया गया था।
जानिए क्यों माता का नाम पड़ा चामुंडा देवी
हजारों वर्ष पहले असुरों ने देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया था। जिसके बाद शुंभ व निशुंभ नामक दो दैत्यों का धरती पर राज था। वह अपनी आसुरी शक्तियों से धरती पर अत्याचार करने लगे, जिससे चिंतित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की आराधना की। देवी दुर्गा ने प्रसन्न होकर सभी देवताओं को वरदान दिया कि वह दैत्यों से उनकी रक्षा करेंगी।
एक दिन दैत्य चंड व मुंड हिमालय पर्वत पर आए और देवी अम्बे के सुंदर स्वरूप को देख मोहित हो गए। उन्होंने देवी के बारे में जाकर दैत्यराज से कहा कि आप तीनों लोकों के राजा है, यहां सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है तो आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जोकि तीनों लोकों में सर्व सुंदर हैं। यह वचन सुनकर शुम्भ माता अम्बे से कहने लगा कि मैं शुम्भ तीनों लोकों का राजा हूं और मैं तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूं। यह सुन माता अम्बे ने कहा कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी।
यह सुन शुम्भ क्रोधित हो गया और उसने चण्ड-मुण्ड नामक दो असुरों को रक्तबीज सहित भेजा और कहने लगा कि माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड-मुण्ड माता के पास गए और माता से युद्ध शुरू कर दिया। तब देवी ने महाकाली का रूप धारण कर चण्ड-मुण्ड का वध किया और उनके शीश काटकर अपनी मुंडो की माला में पिरो दिए। तभी से माता को चामुंडा देवी के नाम से जाना जाता है।
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