बिलासपुर, 11 अप्रैल : आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है, यानी आज मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा दुर्गा का तीसरा रूप है। मां युद्ध मुद्रा में सिंह पर विराजमान हैं। हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा व तलवार है। माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। माता की उत्पत्ति राक्षसों का वध करने के लिए हुई थी। तो आइए, माता चंद्रघंटा का नाम लेकर हम आपको शक्तिपीठ श्री नैना देवी की ओर ले चलें।
जानें क्या है, मंदिर का इतिहास….
शक्तिपीठ मां नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान छठा दर्शन मां नैना देवी का किया जाता है। नैना देवी मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश व हनुमान की मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात दो शेर की प्रतिमाएं हैं। माना जाता है कि शेर माता का वाहन है।
मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं। दाई तरफ माता काली, मध्य में नैना देवी और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है। लोग दूर-दूर से यहां मां के दर्शनों को पहुंचते हैं। माता के स्वरूप को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि नैना झील के किनारे सती माता के नेत्र गिरे थे, जिसके बाद यहां मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
नैना देवी के नाम से राक्षस महिषासुर की कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच सौ वर्षों तक युद्ध चला था, जिसमें असुरों की जीत होने पर राक्षस महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया था। महिषासुर देवता ब्रह्मा का परम भक्त था। एक बार उसने
ब्रह्मा देवता के लिए घोर तपस्या की जिससे खुश होकर उन्होंने महिषासुर को वरदान दिया कि कोई भी पुरुष तुम्हारा वध नहीं कर पाएगा। वरदान के कारण सभी उससे युद्ध करने में विफल हो रहे थे। देवता सामान्य मनुष्यों की भांति धरती पर रहने लगे। महिषासुर का धरती पर अत्याचार बढ़ता जा रहा था। धरती पर हाहाकार मच गया, जिसके बाद सभी त्रिदेव का ध्यान करने लगे।
तभी ब्रह्मदेव, शिवजी, भगवान विष्णु ने एक शक्ति का निर्माण किया, जिसे हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा व समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टों का निवारण हो सके।
देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दिया और कहा “मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी”। इसी के साथ देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ किया और उसका वध कर युद्ध में विजयी हुई। सभी देवी-देवताओं ने माता के जयकारे लगाए और तभी से मां को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।
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