कुल्लू से रेणु कश्यप की रिपोर्ट…
हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियां, सुहावना मौसम पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करता है। दूर-दूर तक बिखरी हरियाली व बहते झरने (Water Fall) हर किसी का मन मोह लेते हैं। मनाली घाटी को नैसर्गिक सौंदर्य ( scenic beauty) में एक “पहाड़ी ढाबा” भी चार चांद लगाता है। यहां मिलते है…परंपरागत तरीके से बनाए गए लजीज पहाड़ी व्यंजन।
जी हां, पहाड़ी व्यंजनों का जायका आधुनिकता से हटकर है। पौष्टिकता (nutritional value) के साथ-साथ लजीज भी हैं। वैसे तो पहाड़ी भोजन अब पहाड़ों (Hills) तक ही सीमित नहीं रह गया है, पर्यटकों ने पहाड़ी स्वाद दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई समेत विदेशों में भी पहुंचा दिया है। लेकिन यहां की शुद्ध आबोहवा के साथ परंपरागत तरीके से परोसने की कला कहीं और नहीं मिलती। खास पेशकश में हम आपको कुल्लू-मनाली की वादियों में परोसे जाने वाले पहाड़ी ढाबा (Pahari Dhaba) से रूबरू करवाने जा रहे हैं।
मनाली (Manali) से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जाणा वाटरफॉल का नजारा अद्भुत है। नग्गर से करीब 11 किलोमीटर दूर झरने की खूबसूरती मन को मोह लेती है। पर्यटक इस स्थल पर खिंचे चले आते हैं। यहां अद्भुत तरीके से कुल्लुवी व्यंजन भी मिलते है। नग्गर कैसल से जाणा तक प्रकृति का भरपूर आनंद लेने के बाद जाहिर है, भूख भी लगेगी। ऐसे में प्रकृति के साथ अठखेलियां करते हुए पौष्टिक व स्वादिष्ट भोजन मिल जाए तो आपकी यात्रा आनंदमय व यादगार हो जाएगी।
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जाणा वाटरफाॅल के साथ एक मेहनतकश पहाड़ी महिला अपना ढाबा चलाती है। वाटरफाल (WaterFall) के नजदीक खाने की खूशबू से कदम खुद ब खुद “सागर ठाकुर” ढाबा की तरफ बढ जाते हैं। ढाबे का संचालन पहाड़ी महिला सुमिता करती हैं। पहुंचने पर सुमिता अदब से लंबी मुस्कान से पर्यटकों (tourists) व आगंतुकों का ढाबे में स्वागत करती हैं। रोजाना करीब 400-500 पर्यटकों को पौष्टिक भोजन परोसती हैं। एक बार जो यहां पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद चख ले, यकीनन दोबारा आने की इच्छा प्रबल हो जाएगी।
क्यों है लजीज जायका ..
“सागर ठाकुर” ढाबा में प्राकृतिक रूप से गांव में ही उगने वाली खाद्य सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। साग-सब्जी, आटा, चावल के साथ-साथ भोजन में डाले जाने वाले मसाले भी घर में ही तैयार किए जाते हैं। ढाबे में बिच्छू बूटी का साग, दाल, कढ़ी को लाल चावल के साथ परोसा जाता है। इसके अलावा मशहूर पहाड़ी व्यंजन सिड्डू बनाए जाते हैं, जिसे घर में तैयार शुद्ध देसी घी के साथ गर्मा गर्म परोसा जाता है। वहीं, मक्की की रोटी व लिंगड का आचार भी थाली की शोभा बढ़ाते हैं। बड़ी बात ये है कि समस्त भोजन (food) को लकड़ी (Wood) के चूल्हें में ही पकाया जाता है। ढाबे में गैस (Gas का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
बॉलीवुड की हस्तियां भी मुरीद ..
सागर ठाकुर ढाबा में देश की कई नामी हस्तियां पहाड़ी खाने का लुत्फ ले चुकी हैं। इनमें फिल्म स्टार सन्नी देयोल, सारा अली खान, मशहूर पहाड़ी सिंगर कुलदीप शर्मा इत्यादि सुमिता के हाथों का स्वाद चख चुके हैं।
क्या कहती हैं सुमिता….
ढ़ाबे का संचालन कर रही सुमिता ने बताया कि वह करीब 15 साल से पर्यटकों को भोजन परोसती आ रही है। चूंकि, इस पर्यटन स्थल के आसपास कोई बड़ा होटल या रेस्टोरेंट नहीं है। लिहाजा, वो पर्यटकों को घर आए मेहमान की तरह भोजन परोसती हैं। सुमिता ने बताया कि वो सुबह 5 बजे तैयारी शुरू कर देती हैं। घर के कामकाज व बच्चों को स्कूल भेजने के बाद 8-9 बजे ढाबे में पहुंच जाती हैं।
उन्होंने बताया कि खाना बनाने के लिए परंपरागत लकड़ी के चूल्हे का ही इस्तेमाल किया जाता है। आम तौर पर थाली में राजमाह की दाल, कढ़ी, बिच्छू बूटी का साग लाल चावल के साथ परोसती हैं। साथ ही गर्मा गर्म मक्की की रोटी व सिड्डू भी देसी घी के साथ परोसे जाते हैं। उन्होंने बताया कि आम तौर पर 400 से 500 थाली रोजाना होती है, लेकिन गर्मी के मौसम में पर्यटकों की आमद अधिक होने के चलते इससे भी अधिक थाली परोसी जाती है। उन्होंने बताया कि भोजन में साग-सब्जी से लेकर मसाले, आटा इत्यादि सब कुछ घर का ही होता है, जिससे खाना पौष्टिकता के साथ-साथ स्वाद से भरपूर होता है। इसके अलावा जंगलों में पाई जाने वाले लिंगड़ (सब्जी) का अचार भी पर्यटक चटखारे लेकर खाते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके ढ़ाबे में अक्सर बाॅलीवुड (Bollywood) के अलावा अन्य सेलिब्रिटी (Celebrity) पहुंचते हैं, जो उनके साथ सेल्फी खिंचवा कर सोशल मीडिया (Social Media) में शेयर करते हैं, ये पल उनको पहाड़ी होने का गर्व महसूस करवाते हैं।
कुल मिलाकर पहाड़ी खान-पान के सामने फाइव स्टार होटल (Five Star Hotel) के पकवान भी फेल हैं। जितनी खूबसूरत देवभूमि (Devbhumi) है, उससे भी सादा है यहां के भोले-भाले लोगों का रहन-सहन, खान-पान व पहनावा। आगंतुकों का स्वागत करने में पहाड़ी लोग कसर नहीं छोड़ते, ये बात सागर ठाकुर ढाबा की सुमिता पर सटीक बैठती हैं। जब भी मनाली में नग्गर की और जाए तो जाणा गांव जरूर होकर आएं।
@R1