नाहन, 14 अप्रैल : हिमाचल के ऐतिहासिक शहर ‘नाहन’ की स्थापना 1621 में हुई। यहां 1889 में रानीताल गार्डन का निर्माण हुआ। रियासत के शासकों की सोच लीक से हटकर थी। गार्डन में बारादरी की भी व्यवस्था की गई, ताकि शहरवासी घर पर परिवार के सदस्य की मृत्यु होने की स्थिति में बारादरी में आकर दसाई की रिवायत को निभा सके। साथ ही खुली बैठक का इस्तेमाल अलग-अलग उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता था।
मौजूदा समय में भी यहां दसाई की जाती है। यानि, परिवार के सदस्य जिन के घर में मृत्यु हुई है, वो यहां आकर दसाई के दिन हेयर कटिंग व शेव बनवाते हैं, साथ ही क्रिया में बैठने वाले व्यक्ति को यहीं स्नान भी करना होता है। हालांकि, पहले परिवार करे तमाम सदस्य यहीं नहाते थे, लेकिन अब एक-दो व्यक्ति ही नहाते हैं।
दरअसल, बारादरी में स्नानगृह तो बनाए गए हैं, लेकिन ये खस्ताहाल हैं। पानी की व्यवस्था तो है ही नहीं। सर्दियों में दसाई करने वालों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सवाल ये है कि नगर परिषद के पार्षदों को ये महसूस क्यों नहीं होता कि उनके भी परिवारों को भी बारादरी की आवश्यकता हो सकती है।
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कुएं के किनारे स्थित बारादरी में न तो उचित बैठने की व्यवस्था है, न ही बिजली। वन विभाग से वन परिक्षेत्र अधिकारी के पद से सेवानिवृत योगेश मिश्रा ने कहा कि नगर परिषद द्वारा दसाई करने वालों से एक तय शुल्क भी लिया जा सकता है।
हाल ही में उनके बड़े भाई स्वर्गीय रमेश मिश्रा का निधन हुआ था। परिवार के सदस्यों को दिक्कत का सामना करना पड़ा। केवल एक व्यक्ति के लिए ही अपने स्तर पर पानी गर्म किया गया, ताकि वो बारादरी की बैठक में एक तरफ ही स्नान कर सके, क्योंकि बाथरूम की व्यवस्था सही नहीं थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि रखरखाव के लिए न्यूनतम शुल्क तय किया जा सकता है। इसमें नगर परिषद सुविधाएं उपलब्ध करवा सकती है।