कांगड़ा, 09 अप्रैल : जैसा की आप सभी जानते है कि आज से नवरात्रि के महापर्व की शुरुआत हो गई है। नवरात्रि हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है, जिसमें नौ दिन मां भगवती दुर्गा के 9 रूपों की आराधना की जाती है। इन नौ दिनों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती है। श्रद्धालु दूर-दूर से माता के मंदिरों में दर्शन को आते है।
हिमाचल के शक्तिपीठों में भी यह भक्तिमय रंग देखने को मिलता है। हिमाचल में मां 5 शक्तिपीठों के रूप में विराजमान है, जहां नवरात्रों के समय में दर्शन को भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मंदिरों व शक्तिपीठों को नवरात्रि के पावन अवसर पर रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। तो आइए आज पहले नवरात्र मां शैलपुत्री का नाम लेकर आपको हिमाचल के शक्तिपीठ ज्वाला जी की ओर ले चलते हैं।
शक्तिपीठ मां ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान चौथा दर्शन मां ज्वाला जी का ही होता है। लोग दूर-दूर से यहां मां की ज्योत के दर्शनों को पहुंचते है। शक्तिपीठ मां ज्वाला जी को नगरकोट धाम के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में भगवती के दर्शन नौ ज्योति रूपों में किए जाते हैं। महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी व अम्बिका देवी। माता के स्वरूप को आदिशक्ति का पहला स्वरूप माना जाता है।
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आइये जानें क्या है मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि शक्तिपीठ मां ज्वाला जी में सती माता की जीभ गिरी थी और देवी छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई थी। सदियों पहले, एक चरवाहे ने अमुक पर्वत पर अग्नि को प्रज्वलित होते देखा, जिसके बारे में उसने राजा भूमि चंद को सूचित किया। राजा को इस बारे में ज्ञात था कि इस क्षेत्र में सती माता की जीभ गिरी थी। जब राजा को इस बारे में पता चला तो उसने अमुक पर्वत पर मां ज्वाला जी का मंदिर बनवा दिया।
#NavratriSpecial : पहले नवरात्रि की शुरुआत “मां ज्वाला जी” के दर्शन के साथ..
ज्वाला माता के नाम से एक अकबर की कहानी भी प्रचलित है। बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने अपने घमंड में एक बार माता की शक्ति को जानने का प्रयास किया। उसने मंदिर में विराजमान माता की ज्योत से उत्पन्न आग की लपटों को लोहे की चादर से बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह अपने प्रयास में नाकामयाब रहा। जिसके बाद उसने ज्योत को पानी से भी बुझाने का प्रयास किया। लेकिन ज्वाला की लपटों ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। तब अकबर को ज्ञात हुआ कि सचमुच मां ज्वाला ज्योति के रूप में वहां विराजमान है।
अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने माता को क्षमा याचना के लिए स्वर्ण का छत्र भेंट करना चाहा। जैसे ही अकबर देवी के सामने सोने के छत्र को लेकर पहुंचा तो सोने का छत्र एक विचित्र धातु में तब्दील हो गया, जो अभी भी अज्ञात है। इस घटनाक्रम के बाद लोगों में माता के प्रति आस्था बढ़ती चली गई। लोग दूर-दूर से माता के दर्शनों को पहुंचते है और अपने परिवार की सुख-शांति व समृद्धि की कामना करते है।
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