शिमला, 28 फरवरी : हिमाचल में कांग्रेस के बागी नेताओं ने विधानसभा में अपनी सदस्यता को दांव पर लगाकर ऐसा खेल खेला है, जो पहाड़ी प्रदेश में पहले नहीं खेला गया। ये अलग बात है कि ” सुक्खू सरकार” खतरे को टालने में सफल हो गई। ट्रोलिंग वाले तो ये भी लिख रहे है “कीचड़ तो खूब हुआ, मगर कमल नहीं खिला”।
सरकार गिरने का खतरा हालांकि टल चुका है, लेकिन हर किसी के जेहन में ये सवाल कौंध रहा है कि आखिर नेताओं ने बगावती सुर क्यों अपनाए। अहम बात ये है कि सीएम सुक्खू के अपने गृह जिला हमीरपुर से ही दो विधायक बगावत पर उतर गए। चिंगारी अपने ही जिला से उठी। सुजानपुर से राजेंद्र राणा व बड़सर से विधायक आईडी लखनपाल ने पार्टी के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में वोटिंग की। वहीं, दो विधायकों का नाता सूबे के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के गृह जिला ऊना से है। इनमें चैतन्य शर्मा व देवेन्द्र कुमार भुट्टो शामिल है।
संसदीय क्षेत्र की बात की जाए तो 6 में से 4 विधायक सीएम सुक्खू के अपने संसदीय क्षेत्र हमीरपुर से है। इनमें सुजानपुर के राजेंद्र राणा, बड़सर के विधायक लखनपाल, ऊना के युवा विधायक चैतन्य शर्मा व कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक देवेन्द्र कुमार भुट्टो शामिल है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से कमजोर नजर आ रही है। यहां से देश के केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सांसद है। वहीं, सुधीर शर्मा कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से ताल्लुक रखते है, जबकि रवि ठाकुर मंडी संसदीय क्षेत्र से है।
खास पेशकश में हम आपको कांग्रेस के बगावत करने वाले विधायकों की पृष्ठभूमि से जुड़ी जानकारी देने जा रहे है…
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राजेंद्र राणा
बीजेपी में रहे राजेंद्र राणा पूर्व सीएम व केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रेम कुमार धूमल के शिष्य रहे। एक वक्त था जब धूमल का चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी राणा संभालते थे। लेकिन,गुरु व चेले में तलवारें खिंच गई। 2017 में राणा उस वक्त राष्ट्रीय मीडिया की सुर्ख़ियों में आ गए जब बीजेपी के सीएम कैंडिडेट व अपने गुरु को विधानसभा का चुनाव हरा दिया। 2022 में भी कांग्रेस के टिकट पर सुजानपुर सीट से चुनाव जीत गए। महत्वाकांक्षा ये रही होगी कि कैबिनेट मंत्री बनाया जाये। मौजूदा राजनीतिक परिपाटी में राणा भाजपा में जाने की बात कर रहे है,लेकिन सवाल ये भी उठता है कि क्या वो शख्स राणा को बीजेपी में वापसी सहन कर पायेगा, जिसकी वजह से उन्होंने सीएम की कुर्सी को खो दिया था। 6 अप्रैल 1966 को जन्मे राणा 2006 से 2012 भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता भी रहे साथ ही धूमल सरकार में स्टेट मीडिया एडवाइजरी कमेटी के चेयरमैन भी रहे। हो सकता है, मंत्री पद न मिलने की टीस ने बगावती बनाया हो।
सुधीर शर्मा
वैसे तो धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा को सभ्य नेता माना जाता है। 6 बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की भी गुड बुक्स में थे। सितंबर 2019 में धर्मशाला विधानसभा का उप चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। उस समय वो ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव भी थे। चुनाव न लड़ने के लिए सुधीर ने प्रदेश के संगठन को जिम्मेदार ठहराया था।2019 में सुखविंदर सुक्खू के बाद कुलदीप राठौर ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी। इस दौरान भी सुधीर शर्मा के भाजपा में जाने की अटकलें तेज हुई थी। यहां तक कहा गया था कि उप चुनाव में हार की आशंका को देखते हुए सुधीर ने चुनाव लड़ने से इंकार किया है।
उप चुनाव में भाजपा के विशाल नैहरिया जीते थे, कांग्रेस के विजय इंद्र करण को तीसरा स्थान मिला था। 2017 में सुधीर शर्मा किशन कपूर से चुनाव हारे थे। सुधीर ने दो चुनाव बैजनाथ से जीते। 2012 में धर्मशाला से जीत की हैट्रिक लगाई। 10 साल बाद 2022 में चौथी बार चुनाव जीते हैं। सुधीर शर्मा 51 साल के हैं।
आईडी लखनपाल
27 अक्तूबर 1962 को जन्मे आईडी लखनपाल पहली बार 2012 में विधायक बने। 2017 में भी निर्वाचित हुए। 2013 से 2017 तक मुख्य संसदीय सचिव का पद भी संभाला। 2022 में जीत की हैट्रिक लगाई। आईडी लखनपाल की पहचान कांग्रेस में इस कारण भी होती है, क्योंकि वो भाजपा के गढ़ से चुनाव जीतते रहे।
निश्चित तौर पर केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के गृह जिला से लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने के बावजूद भी अहम ओहदा न मिलने से आईडी लखनपाल भी निराश होंगे। ये अलग बात है कि 2022 में कांग्रेस ने हमीरपुर में 2017 के चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था। सुक्खू भी नादौन से ही जीतकर आए।
शिमला नगर निगम में 1997 से 2002 तक पार्षद रहे। इसके बाद मनोनीत पार्षद भी बने। 2008 से 2013 तक हिमाचल प्रदेश कांग्रेस सेवादल के मुख्य संगठक भी रहे। इसके अलावा भी अहम ओहदों पर रहे। सेवादल से जुड़े रहने के कारण ग्रासरूट तक भी पकड़ रही है।
चैतन्य शर्मा
हिमाचल विधानसभा के सबसे युवा विधायक चैतन्य शर्मा उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव राकेश शर्मा के सुपुत्र है। उच्च शिक्षित चैतन्य शर्मा ने पहली बार ही चुनाव लड़ा था और जीतकर विधानसभा भी पहुंचे थे। चैतन्य शर्मा के बागी सुर अपनाने के पीछे का कारण अनदेखी और उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों में धीमी गति को बताया जा रहा है। जानकार ये भी बताते है कि चैतन्य शर्मा हर हाल में चुनाव लड़ना चाहते थे ऐसे में अगर उन्हें भाजपा भी चुनाव में टिकट देती तो वह भाजपा के टिकट पर भी चुनाव लड़ सकते थे। वहीं राजनीति में अनुभव की कमी और परिपक्वता न होना भी उनका पार्टी के खिलाफ बागी सुर अपनाने का कारण माना जा रहा है।
रवि ठाकुर
लाहौल स्पीति से दो बार विधायक रह चुके रवि ठाकुर ने भी बगावती सुर अपनाए है। इसका सबसे बड़ा बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि उन्हें जनजातीय मंत्री का पद नहीं दिया गया। इस बात पर किन्नौर के विधायक व वरिष्ठ नेता जगत सिंह नेगी की ताजपोशी की गई। रवि ठाकुर भी मंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठे थे। लेकिन जब उनकी मांग को पूरा नहीं किया गया तो वह सरकार के खिलाफ भी बोलते नजर आए। एक दफा रवि ठाकुर खुले मंच से यह भी कह गए थे कि राज्य सरकार के खिलाफ जनता में गुस्सा बढ़ गया है। वही जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में हो रहे विकास कार्यों से भी वह खुश नहीं नजर आ रहे थे। रवि ठाकुर का कहना था कि जिला में जनता की अपेक्षाओं के मुताबिक विकास कार्य नहीं हो रहे है। जिस कारण उन्होंने भाजपा की ओर रुख किया था।
देवेन्द्र कुमार भुट्टो
32 साल के बाद कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र में को कांग्रेस की झोली में डालने वाले देवेन्द्र कुमार भुट्टो के बगावती सुर से हर कोई हैरान है। हालांकि उन्होंने 2017 में भाजपा को छोड़कर ही कांग्रेस का दामन थामा था। अहम बात है कि भुट्टो हिमाचल के कद्दावर भाजपा नेता और पूर्व जयराम सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे वीरेंद्र कंवर को कड़ी शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे। उनके बगावती सुर का सबसे बड़ा कारण उनकी भाजपा से नजदीकियां को माना जा रहा है। कांग्रेस में आने से पहले वह 25 साल तक भाजपा में रह चुके थे, संभवता इसी कारण राज्यसभा के उम्मीदवार के लिए क्रॉस वोटिंग की। मंत्री पद के लिए चर्चा में नहीं थे, मगर पुराने घर को शायद नहीं भुला पाए इसी वजह से रुष्ट कैंप में शामिल हो गए।