मंडी: क्या आप यकीन करेंगे कि पांच लोगों का परिवार बीते एक साल से सरकारी स्कूल के एक छोटे से कमरे में रह रहा है। शायद आपको यकीन न आये, लेकिन यकीन मानिये यह सच है। यह कहानी सरकार और प्रशासन की उस बेरूखी को दर्शाती है जो आपदा के वक्त जान माल का नुकसान रोकने के लिए तो सक्रीय हो जाती है लेकिन बाद में आपदा प्रभावितों की सुध लेना भूल जाती है। देखिये एक परिवार की यह दर्दभरी दास्तां।
’’मुझे आज भी याद है 9 सितंबर का वो भयानक मंजर। जब धर्मपुर में मुसलाधार बारिश हो रही थी। गरली खड्ड का पानी हमें डराने लग गया था। और देखते ही देखते खड्ड के किनारे बना मेरा आशियाना पानी के तेज बहाव में बह गया। वर्षों से तिनका-तिनका करके जो आशियाना बनाया था उसे अपनी आंखों के सामने बिखरने में एक क्षण भी नहीं लगा। सिर्फ तन पर जो कपड़े पहने थे वही बचे उसके सिवाय और कुछ भी नहीं बचा सका।’’ यह दास्तां है मंडी जिला के धर्मपुर उपमंडल के गरली गांव निवासी महिया राम और उसके परिवार की। 9 सितंबर 2015 को आई बाढ़ ने महिया राम का सबकुछ तबाह कर दिया। न घर बचा और न ही जमीन। रह गये तो वो जख्म जो आज भी सीने को कचोटने का काम करते हैं।
महिया राम खेतीबाड़ी करता था। महिया राम की एक पत्नी, दो बेटे और एक बहू है। हंसता खेलता परिवार आज लोगों के रहमो करम पर जीने को मजबूर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बीते एक वर्ष से महिया राम और उसका पूरा परिवार प्राईमरी स्कूल गरली के एक छोटे से कमरे में रहने को मजबूर है। यहां भी शरण तब मिली जब एसडीएम को चैखट पर फरियाद लगाई। अन्यथा बाढ़ आने के बाद तो शासन और प्रशासन ने सुध लेना ही छोड़ दिया था। महिया राम को चिंता सता रही है कि न जाने कब स्कूल प्रशासन उसे स्कूल के कमरे को खाली करने का आदेश जारी कर देगा और मौजूदा छत भी उससे छीन जायेगी।
महिया राम के पास जो भी संपति थी वह सारी की सारी बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी है। एक बेटे की शादी करवानी थी जो भी अब हो पाना संभव नहीं लग रहा। बाढ़ में सबकुछ गंवाने के बदले महिया राम को सरकार की तरफ से एक गैस कुनैक्शन और 15 हजार की आर्थिक सहायता मिली। अब आप खुद की सोचिये कि जिसने अपना सबकुछ गंवा दिया हो और सरकार उसे 15 हजार की आर्थिक सहायता देकर अपना पल्ला झाड़ दे तो ऐसी सरकार को आप क्या कहेंगे।
अब एक बार फिर से बरसात का मौसम शुरू हो चुका है। एक बार फिर से महिया राम और उसके परिवार के सामने वही खौफनाक मंजर मंडराने लग गया है। अब फिर से निगाहें सरकार और प्रशासन पर टिकी हुई हैं। उम्मीद का दामन अभी तक थामा हुआ है कि न जाने कब सरकार का कोई नुमाईंदा सुध लेने आ जाये। महिया राम चीख-चीख कर कह रहा है, कहां हो सरकार, सुन लो मेरी दर्दभरी पुकार…..