नाहन, 30 जनवरी : मरीजों की आंखों में आंसू नहीं देख पाती है। सड़क पर चलते-चलते भी मरीजों को अटेंड कर लेती है। मरीज के चेहरे पर मुस्कुराहट आने के बाद सुकून महसूस करती है। हर महीने गरीब रोगियों पर खर्च करने के लिए वेतन में से एक बजट का भी निर्धारण करती है। यहां बात हो रही है, डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन के मेडिसिन विभाग में तैनात डॉ. अनिकेता शर्मा की कार्यकुशलता व कर्तव्यनिष्ठा की, वो मानवता की सेवा में एक मिसाल बनी है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मेडिकल प्रोफेशन में डॉक्टर को भगवान का दर्जा मिलता है। बीमार या पीड़ा से ग्रस्त रोगी उपचार करने वाले चिकित्सक (Doctor) में ही भगवान का रूप देखते है। रियल लाइफ (real life) में चंद चिकित्सक ही इस कसौटी पर खरा उतरते हैं।
मेडिसिन विभाग की डॉ. अनिकेता शर्मा ने उस शपथ को भी सार्थक कर दिखाया है, जो हरेक चिकित्सक को डिग्री पूरी होने के बाद दिलाई जाती है। मेडिसिन में आईजीएमसी से एमडी की पढ़ाई कर चुकी डॉक्टर शर्मा जैसे चिकित्स्कों की कर्तव्यनिष्ठा की वजह से ही आम लोगों का मेडिकल प्रोफेशन से भरोसा पूरी तरह से नहीं उठा है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क को लगातार महिला चिकित्सक के व्यवहार व कर्तव्यनिष्ठा को लेकर जानकारी मिल रही थी। इस बार पड़ताल करने पर पता चला कि वास्तव में ही वो एक मिसाल है। ओपीडी में ड्यूटी की बजाय हर वक्त वार्ड या फिर आपातकालीन सेवा में तत्पर रहती है। उनका मानना है कि ओपीडी (OPD) में स्थिर हालत में मरीज आते हैं, लेकिन आईसीयू व सीसीयू वार्ड में मरीजों की स्थिति ठीक नहीं होती। ऐसे में मानवता की सेवा का मौका नहीं मिलता है।
यकीन मानिए, वो हर महीने जरूरतमंद मरीजों पर खर्च करने के लिए एक बजट भी तय करती है। 2 से 5 हजार की राशि उन मरीजों को तत्काल उपलब्ध करवा देती है, जो दवाइयों या फिर अन्य खर्चे के लिए बेबस होते हैं। कई मर्तबा चिकित्सक रिमोट इलाकों में सेवा प्रदान करने से कतराते हैं, लेकिन वो मानवता की सेवा में हमेशा ही तत्पर रहती है।
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उदाहरण के तौर पर वैश्विक महामारी की बात करे तो मेडिसिन विभाग से वो ही कोविड वार्ड में सबसे अधिक राउंड लेती थी। घर पर दो छोटी-छोटी बेटियां होने के कारण कई मर्तबा कोविड पीड़ित मरीजों से सीधे बात करने पर घबराती थी, लेकिन हमेशा ही ईश्वर पर विश्वास करती थी। डॉक्टर अनिकेता शर्मा की बड़ी बेटी कार्मेल स्कूल में चौथी कक्षा की छात्रा है, जबकि दूसरी बेटी यूकेजी में पढ़ाई कर रही है। पति मोहाली के सरकारी मेडिकल कॉलेज में ऑर्थो विशेषज्ञ है।
खास बात यह भी है कि चिकित्सकों पर हमेशा ही चंडीगढ़ से अप डाउन के आरोप भी लगते रहते हैं, लेकिन डॉ. अनिकेता शर्मा ने बेटियों को नाहन में ही रखा है। खुद चंडीगढ़ जाने की बजाए पति ही वीकेंड पर नाहन आते हैं। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने डॉक्टर अनिकेता शर्मा से बातचीत की। उन्होंने बताया कि टांडा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई करने के बाद आईजीएमसी से एमडी की है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह डीएम की सीट के लिए भी प्रयासरत है। कहा कि वह मरीजों को मरता नहीं देख सकती। मरीज की आंखों में आंसू देखकर बेहद ही भावुक हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान काफी चुनौतियां सामने आई थी। ऐसे जरूरतमंद भी सामने आए थे, जिनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे, ऑक्सीमीटर डोनेट कराए। निजी तौर पर सामर्थ्य के मुताबिक केसेंट्रटर भी उपलब्ध करवाए थे।
उन्होंने कहा कि कोविड संकट में 26 साल के लड़के का जीवन बचाना बेहद ही संतोषजनक था। एक सवाल के जवाब में बताया कि नाहन मेडिकल कॉलेज में 2019 में सेवाएं शुरू की थी। छोटी बेटियों के साथ जिम्मेदारी को निभाना कई बार मुश्किल लगता है, लेकिन सोच सही हो तो रास्ता भी निकलता ही है। उल्लेखनीय है कि 2019 से पहले मेडिसिन विभाग में तैनात डॉक्टर देवेश्वर पांडे भी मेडिकल प्रोफेशन में एक मिसाल थे। स्वास्थ्य विभाग से इस्तीफा भी एक खास वजह से देना पड़ा था।
मौजूदा में भी नाहन से कई पेशेंट डॉक्टर पांडे से डायग्नोज करवाने के लिए सोलन का रुख करते हैं। कुल मिलाकर मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े तमाम लोग भी अपनी सोच में ऐसा बदलाव करें तो निश्चित तौर पर सही मायनों में भगवान का दर्जा हासिल कर लेंगे। क्योंकि गंभीर अवस्था में मरीज कुछ पल के लिए भगवान को भूलकर एक चिकित्सक को ही भगवान मान लेता है।