शिमला, 08 दिसंबर : हिमाचल की जनता ने आखिरकार दिखा दिया कि लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है। अंग्रेजी की कहावत है कि विधायक हमेशा इलेक्टिड होते हैं न कि सिलेक्टिड।
पिछले 35 सालों से कुटलैहड़ विधानसभा में भाजपा का परचम लहराता रहा है। यहां से चुनाव के आरंभ में पूर्व कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र कंवर की सीट सबसे सेफ मानी जा रही थी। मगर जैसे-जैसे चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ी, कंवर की राह मुश्किल होती चली गई और उन्हें चुनाव परिणाम में कांग्रेस के देवेंद्र भुट्टो से हार का सामना करना पड़ा।
वहीं कांगड़ा से एकमात्र महिला मंत्री सरवीण चौधरी शाहपुर से कांग्रेस प्रत्याशी केवल पठानिया से चुनाव में पराजित हो गई। वहीं, घुमारवीं से खाद्य आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग को भी हार का सामना करना पड़ा। उन्हें कांग्रेस के राजेश धर्माणी ने परास्त किया। एक अन्य मंत्री सुरेश भारद्वाज को इन चुनावों में हार मिली। हालांकि उनका विधानसभा क्षेत्र बदला गया, जिसके चलते उनका हारना लगभग तय था।
जनजातीय क्षेत्र लाहौल-स्पीति से कैबिनेट मंत्री रहे रामलाल मार्केण्डेय कांग्रेस के रवि ठाकुर से चुनाव हार गए। स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल भी इस दफा लगभग 7 हजार वोटों से चुनाव हारे। धर्मपुर से रिकाॅर्ड जीत दर्ज करते रहे पूर्व मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह के सुपुत्र रजत ठाकुर को भी हार का मुंह देखना पड़ा। पहली दफा में ही वो चुनाव हार गए।
विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार, उद्योग मंत्री विक्रम ठाकुर व ऊर्जा मंत्री रहे सुखराम चौधरी चुनाव जीतने में सफल हो गए। दल बदल कर भाजपा में आए लखविंद्र राणा नालागढ़ से चुनाव हार गए। वहीं, कांगड़ा में कांग्रेस से भाजपा में आए पवन काजल जरूर चुनाव जीतने में सफल रहे। चुराह से विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज जीतने में सफल रहे।
वन मंत्री रहे दबंग नेता राकेश पठानिया को फतेहपुर से हार का मुंह देखना पड़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण उनका निर्वाचन क्षेत्र बदल कर नूरपुर से फतेहपुर करने का भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ा है। नाहन से विधायक रहे व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. राजीव बिंदल को भी पहली दफा हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें कांग्रेस के अजय सोलंकी से मात मिली है।
कुल मिलाकर भाजपा के दिग्गजों के हारने की जो भविष्यवाणियां की जा रही थी, वो एक हद तक सही साबित हुई।