शिमला (शैलेंद्र कालरा): हिमाचली बेटे से आईएएस की परीक्षा में केवल 10 अभ्यर्थी ही आगे रहे। 11वां रैंक हासिल कर बैजनाथ के अनुराग चंद्र शर्मा आईएएस बन गए हैं। 2014 के बैच में 416वां रैंक मिला था, लेकिन जिद थी सर्वश्रेष्ठ बनने की। अलबत्ता शिद्दत-मेहनत रंग लाई। पारिवारिक पृष्ठभूमि देश सेवा की रही है। 90 वर्षीय दादा भगवान दास शर्मा ने अपना समूचा जीवन सेना में रहकर देश को समर्पित किया। सौभाग्य से पोते की इस सफलता पर परिवार के साथ खुशी को साझा कर रहे हैं।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से फोन पर अनुराग चंद्र शर्मा ने दिल्ली से लंबी बातचीत की। इस दौरान अनुराग ने यह भी कहा कि माता-पिता के अलावा दादा बड़ी प्रेरणा का स्त्रोत हैं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में हिस्सा लिया था। नेवी में कमांडर के पद से सेवानिवृत अनुराग के पिता कमांडर पुनिल चंद्र शर्मा का कहना है कि अनुराग की मां कमलेश चंद्र शर्मा का इस सफलता में बड़ा श्रेय है, क्योंकि दोनों बेटों की पढ़ाई व लालन-पोषण पर अधिक ध्यान दे पाती रही। छोटा भाई अक्षय इंजीनियरिंग कर रहा है।
देश भर में 11वां रैंक हासिल करने वाले अनुराग चाहते हैं कि उन्हें हिमाचल कैडर मिले, ताकि अपने प्रदेश की सेवा करने का मौका मिले। दूसरा ऑप्शन राजस्थान दिया है। इसकी वजह यह है कि पिता की स्कूलिंग राजस्थान में हुई।
आईएएस अनुराग की सफलता का राज
देश भर में 11वां रैंक हासिल करने वाले अनुराग ने अपनी सफलता के मूलमंत्र साझा किए हैं, ताकि इस परीक्षा की तैयारी में लगे अन्य युवाओं को भी मार्गदर्शन मिल सके। सफलता पाने वाले अनुराग की राय के मुताबिक यह परीक्षा सौ मीटर की दौड़ नहीं है, बल्कि एक मैराथन है। धीरे-धीरे स्टार्टअप लेना होता है, ताकि लंबी दौड़ दौड़ी जा सके। प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद असल दौड़ शुरू होती है। तब 15 से 16 घंटे जरूरी हैं। दिल्ली में करोल बाग व राजिंद्र नगर में मिलने वाली पाठन सामग्री को भी अनुराग ने जुटाया। इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री का भी जमकर दोहन किया।
क्या थी अनुराग की दिनचर्या?
प्रारंभिक परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद अनुराग ने एक खास तरह की दिनचर्या को फॉलो किया। इसके मुताबिक कोचिंग कक्षाओं से शाम को साढ़े 8 बजे लौटते हैं। साढ़े 9 बजे से सुबह 5 बजे तक लगातार पढ़ाई। इसके बाद सुबह 6 से 12 बजे तक सोना। फिर कोचिंग कक्षाएं। 10 दिन तक इस तरह की दिनचर्या को अपनाने के बाद एक दिन का ऐसा ब्रेक, जिस दिन सिर्फ ओर सिर्फ रिलैक्स। अनुराग का कहना है कि इस तरह का कडक़ परिश्रम प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के फौरन बाद कर देना चाहिए।
कब तय किया लक्ष्य?
दिल्ली में ही अपनी स्कूलिंग के दौरान अनुराग ने आईएएस बनने का सोच लिया था। लेकिन चाहते थे कि इससे पहले प्रोफैशनल डिग्री हासिल की जाए। लिहाजा इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी टेक की पढ़ाई की। आईटीसी में चार महीने की नौकरी भी की। पहले ही प्रयास में सिविल सर्विसिज की परीक्षा पास कर ली। रैंक से संतुष्ट नहीं हुए। अब अपनी जिद पूरी करते हुए अनुराग ने 11वां स्थान हासिल कर परिवार समेत समूचे प्रदेश का नाम गौरवान्वित कर दिया है।