बिलासपुर, 12 जनवरी : हिमाचल प्रदेश में अब लोहड़ी गाने की परम्परा लुप्त होने लगी है। समय का स्वरूप इतना बदल चुका है कि बच्चे रात को लोहड़ी गाने के लिए अपने घरों से ही नहीं निकलते, क्योंकि एक तो बच्चों पर परिवार की बंदिशें रहती है दूसरे बच्चे अधिकतर टीवी या मोबाइल पर अधिक मशरूफ रहते हैं। जिस कारण हमारी यह परम्परा सिमटती जा रही है और आपसी मेल-मिलाप खत्म होता जा रहा है।
समय इतना बदल गया है कि लोहड़ी गाने में भी बच्चे शर्म करने लग गए हैं। इसका कारण यह हुआ कि साल में एक बार आने वाले लोहड़ी पर भी बच्चे घरों से बाहर भी नहीं निकलते शायद इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कुछ समय पहले जब टीवी व मोबाइल का दौर नहीं था तो लोहड़ी गाने की परम्परा का स्वरूप कुछ अपना अलग ही था। बच्चों को लोहड़ी का इंतजार रहता था और एक सप्ताह भर पहले बच्चों की टोलियां एक दूसरे गांव जा जा कर लोहड़ी मांगते थे और लोग भी बड़ी चाव से उनका इंतजार किया करते थे। लोहड़ी गाने पर बच्चों को गेहूं और मक्की अनाज दिया जाता था।
छोटी छोटी बच्चियों का लोहड़ी गाने का अंदाज भी लोग बहुत पसंद आता था। छोटी-छोटी बच्चियां आसपास के घरों में जाकर लोहड़ी गाया करती थी अब सभी बिना काम के इतने व्यस्त हो गए हैं कि किसी के पास शायद समय ही नहीं है। पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि यह परम्परा लुप्त सी हो गई है इसे चाहे वक्त का परिवर्तन मान लो या आधुनिकता की चकाचौंध।