सोलन (दया राम कश्यप) : हिमाचल प्रदेश को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि प्रदेश मे कई स्थान ऐसे है जहां भगवान शिव अवतार के रूप मे विराजमान है। सोलन के आसपास भी अनेक शिवालय मंदिर व गुफाए मौजूद हैं। इसी तरह की प्राचीन शिव गुफा सोलन से करीब 7 किलो मीटर दूर गांव पट्टाघाट के समीप शिव ढांक मे स्थापित है, जहाँ महाशिवरात्रि को शिव गुफा मे विराजमान शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए भक्तो का तांता लगा रहता है। इस गुफा के मुख्यद्वार पर एक बड़ी पत्थर की शिला है, जिसको थपथपाने से डमरू बजने जैसी ध्वनि निकलती है।
सोलन के सभी शिवालय मन्दिरों मे जहां भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए पूजा की थाली और हाथों मे दूध की गड़वी लेकर भक्तजन लम्बी-लम्बी कतारो मे खड़े होकर अपनी-अपनी बारी का इंतजार करते हुए देखने को मिले। वहीं सोलन से 7 किलो मीटर का सफर बस से ओर 2 किलो मीटर का सफर दुर्गम रास्ता पैदल चलकर श्रद्धालु बम बम भोले के उदघोष के साथ शिव ढांक नामक स्थान तक पहुंचते है। जहां प्राचीन गुफा में भगवान शिव शिवलिंग के रूप मे विद्यमान है। गुफा की छत से पत्थर के चार थन बने हुए हैं, जिसमें से दो टूट गए ओर दो थनों मे से अभी भी शिवलिंग पर जल गिरता रहता है।
शिव गुफा के बाहर तिलक कर रहे पुजारी से प्राचीन शिवलिंग ओर पत्थर की शिला के बारे मे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पहले उनके बुजूर्ग पुजारी के रूप मे शिव गुफा में पूजा करवाते थे। अब वे शिवरात्री को पूजा करवाते है। उन्होंने बताया कि गुफा के द्वार पर जो बड़ी शिला पत्थर की है उसे थपथपाने से डमरू के बजने जेसी ध्वनि निकलती है। उन्होंने यह शिला अपने हाथों से थपथपाकर भी दिखाई। जिसे देखकर टीम भी आश्चर्यचकित रह गई।
स्थानीय निवासी तीर्थ राम ठाकुर ने बताया कि भगवान शिव को स्थानीय लोग इष्टदेव के रूप मे पूजते है। इस क्षेत्र और आसपास के गांव के लोग अपने-अपने घरों से गऊ माता का दूध ओर देशी घी लेकर आते है जिससे भगवान शिव की पूजा की जाती है और घी से बने पुड़े को प्रसाद के रूप मे श्रद्धालुओं को दिया जाता है।
लोगों का मानना है कि यह शिवरात्रि को आकर कोई भी श्रद्धालु भगवान से जो भी मन्नत मांगता है वह अवश्य पूर्ण होती है। महाशिवरात्रि को यहां पर स्थानीय लोगों द्वारा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। जिसमे शिव भक्त भारी संख्या मे आकर शिवलिंग के दर्शन व आशीर्वाद लेकर भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते है।