नाहन, 13 नवंबर: दक्षिण हिमाचल में सराहां के समीप भूरेश्वर महादेव मंदिर की पवित्र शिला पर इस बार ‘‘देव दर्शन’’ नहीं होंगे। साथ ही देव क्रियाएं भी नहीं होंगी। मंदिर में केवल साधारण पूजा-अर्चना को मुख्य कारदार द्वारा किया जाएगा। ऐसा, 30 साल पहले भी हुआ था। दरअसल, देव कार्य को संपन्न करने वाले पुजारी के घर में 10 नवंबर को संतान प्राप्ति हुई है। लिहाजा, शास्त्रों के मुताबिक घर पर सूतक लगा हुआ है।
मंदिर के वरिष्ठ पुजारी 92 वर्षीय पंडित केशवानंद जी का कहना है कि समाज में सदियों से सूतक की परंपरा चली आ रही है। सूतक दोष में देव कार्य वर्जित होते हैं। घर पर जब तक हवन व अन्य अनुष्ठान के बाद शुद्धिकरण नहीं होता, तब तक कोई धार्मिक कार्य नहीं हो सकता।
अमूमन ग्यास पर्व पर मूल स्थान से भूरेश्वर महादेव की देव यात्रा होती है। इससे पहले पुजारी में स्वयं देवता अपना श्रृंगार करते हैं। मंदिर में देव यात्रा के पहुंचने के बाद शिला विशेष पर देव दर्शन होते हैं। इस प्रथा को लंबे अरसे से निभा रहे पुजारी डाॅ. मनोज शर्मा का कहना है कि मुख्य कारदार द्वारा देव क्रियाओं को पूरा किया जाएगा। लेकिन शिला विशेष पर देव दर्शन नहीें होंगे। बता दें कि 2018 में भूर्शिंग मंदिर में चिकनी शिला पर कूदने की रिवायत भी 12 साल बाद शुरू हुई थी। चूंकि इस शिला पर कूदने में जोखिम होता है, लिहाजा इस कार्य को करने वाले पंडित की पत्नी देव यात्रा शुरू होने से पहले ही सुहाग की निशानियां भी उतारती है।
दिवाली के 11 दिन बाद ग्यास की रात शिला पर छलांग की रिवायत है। हलका सा भी संतुलन बिगड़ने पर पुजारी के सैंकड़ों फीट गहरी खाई में गिरने का खतरा होता है। देवता के आदेश पर ही ये निर्भर करता है कि पुजारी द्वारा घनघोर अंधेरी रात में चिकनी शिला पर छलांग लगाई जाएगी या नहीं।
गौरतलब है कि दिन भर इस शिला पर श्रद्धालुओं द्वारा घी, मक्खन, दूध इत्यादि अर्पित किया जाता है। देव स्थली में जुटने के बाद रात करीब अढ़ाई बजे तक देवता व देही माता का जयकार किया जाता है।
उधर, एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत करते हुए पुजारी डाॅ. मनोज शर्मा ने कहा कि बुजुर्गों से मिली जानकारी के मुताबिक करीब 30 साल पहले भी ऐसा हुआ था, जब देव यात्रा नहीं हुई थी। हालांकि, कुछ अरसे तक शिला पर छलांग लगाने की रिवायत बंद रही थी, जिसे 2018 में बहाल किया गया था।