पांवटा साहिब, 19 अक्तूबर : गौवंश की रक्षा को लेकर बड़े-बड़े आडंबर किए जाते हैं, मगर धरातल पर बेसहारा गौवंश तड़पता नजर आता है। कुछ समय पहले तक एक युवक सचिन ओबराॅय पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाए था। लेकिन अचानक ही जीवन में गौवंश की दुर्दशा को देखकर विचलित हो गया। न केवल गौ संरक्षण के लिए एक गौशाला का निर्माण लाखों रुपए का कर्ज लेकर कर डाला, बल्कि इनके हितों के लिए भी आवाज उठाना शुरू कर दिया।
करीब तीन सप्ताह पहले सचिन ने चार सूत्रीय मांगों को लेकर सांकेतिक धरना दिया था। इसका कोई समाधान न निकलने पर सचिन ने आमरण अनशन शुरू करने का फैसला लिया। बता दें कि विश्व स्तर पर पशु प्रेमी के तौर पर पहचान रखने वाली सांसद मेनका गांधी ने हाल ही में सचिन ओबराॅय से संपर्क साधा था। साथ ही बेजुबानों की हालत के बारे में फीडबैक लिया था। निश्चित तौर पर इससे सचिन की हौंसला अफजाई हुई होगी।
मंगलवार सुबह नाटकीय घटनाक्रम में नगर परिषद ने रामलीला मैदान की अनुमति को खारिज कर दिया। फिर, पुलिस के साथ हल्की नोकझोंक के बावजूद वो आमरण अनशन पर बैठ गए। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में सचिन ओबराॅय ने कहा कि सरकार को अवगत करवाया गया। प्रशासन को गौवंश की हालत बारे सूचित किया गया, कोई हल नहीं निकला। अब तो आमरण अनशन पर बैठ गया हूं। मांगों को लेकर पूछे गए सवाल पर सचिन ने कहा कि सरकारी गौशालाओं में गौवंश की हालत दयनीय है। इस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
गौशालाओं में कर्मचारियों की नियुक्ति होनी चाहिए। एक बार सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा गौवंश को गौशालाओं में पहुंचा दिया जाना चाहिए। इसके बाद भी अगर लोग गऊओं को सड़कों पर छोड़ते हैं तो उनके खिलाफ न केवल आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए, बल्कि जुर्माना भी वसूला जाना चाहिए। अगर गौशाला में चारे की किल्लत होती है, या फिर गऊओं को दयनीय हालत में पाया जाता है तो संबंधित विभाग के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
सचिन ने कहा कि इस मुहिम में उन्होंने ऐसे वीडियो भी शेयर किए थे, जो साफ इंगित कर रहे थे कि बेजुबान गौवंश को सरकारी गौशालाओं में भी मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। सचिन ने कहा कि गौ संरक्षण को लेकर सरकार मोटी राशि खर्च करने का दावा करती है, मगर धरातल पर हालात किसी से छिपे नहीं है।