हरिपुरधार/सुरेंद्र चौहान : हिमाचल को देव भूमि का गौरव प्राप्त है और यहां अनेकों देवी देवताओं के मठ मंदिर व देव तुल्य शक्ति चिन्ह अलग-अलग मान्यताओं के अनुरूप विराजमान है। ठीक उसी प्रकार से चूड़धार श्रृंखला में बसा चूरू परिवार की गाथा भी प्राचीन काल से ही जुड़ी हुई एक रोचक कहानी को बयां करती है और ऐतिहासिक है।
चूड़धार मंदिर ऊंची चोटी पर स्थित है। भगवान शिव के मानव अवतार शिरगुल देवता का वास है। उनके सहयोगी माने जाने वाले चूरू देवता का भी पुराना इतिहास है जोकि शिरगुल देवता के गण के रूप में एक पत्थर की शिला पर विराजमान है। धार्मिक भावनाओं की दृष्टि से इस शिला की मान्यता बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से चूरू देवता की शिला को उतना ही शक्तिशाली मान्यताओं में आंका जाता है। ऐसे में चूड़धार मंदिर जाने वाले यात्री इस शिला के अवश्य ही दर्शन करते हुए मन्नत मुरादें पूरी हो जाती हैं।
आस्था की दृष्टि से चूड़धार श्रृंखला में स्थित मंदिर भगवान शिरगुल महाराज की तपोस्थली पर वर्ष भर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी आस्था रखते हुए दर्शन करने आते हैं। इसी प्रकार देव तुल्य शक्ति चिन्ह चूरू देवता व गुगा पीर का भी पूजन ध्यान करते हुए अपनी यात्रा मंगलमय बनाते हैं। बैसाखी के पावन पर्व पर चूड़धार श्रृंखला में बसे शिरगुल देवता मंदिर के कपाट खुल जाते है और भगवान की निरंतर प्रक्रिया से पूजा अर्चना आरंभ हो जाती है।