हमीरपुर, 20 मार्च : दुनिया भर में आज विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। भारत सहित दुनिया भर में गोरिया पक्षी की संख्या तेजी से घट रही है या यूं कह लें कि यह पक्षी लुप्त होते जा रहे हैं। आज हर बात को लेकर चर्चा की जाती है, भाषण होते हैं लेकिन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पक्षियों की चिंता शायद कोई नहीं करता। इसी बीच गौरैया को बचाने के लिए हमें भी ठोस कदम उठाने चाहिए। इसी मुहिम को आगे ले जाते हुए हमीरपुर की दो बच्चियों ने गौरैया को बचाने के लिए एक अनूठी पहल की है।
दो बहनों ने की अनूठी पहल… मनवी व तनवी जो कि सगी बहने हैं। गौरैया के लिए गत्ते के डिब्बे से एक घोंसला बनाया है, जिसे देख सभी इन बच्चियों की प्रशंसा कर रहें हैं। मनवी व तनवी ने गत्ते के एक खराब पड़े डिब्बे को ठीक किया और उसे घोंसले की तरह सजाया। इन बच्चों ने बताया कि दादी मां ने उन्हें बताया है कि पहले चिडिय़ां बहुत ज्यादा होती थी, लेकिन अब इनकी संख्या कम हो गई है। यह चिडिय़ां पहले घरों के बरामदे में ही अपने घौंसले बनाया करती थीं मगर अब ऐसा नहीं है।
उसी बात को सुनकर इन दोनों बच्चों गौरैया के एक घोंसला बनाने की मन में ठानी और गत्ते के वेस्ट डिब्बे से एक घोंसला बनाया व उसे घर के परिसर में ही टांग दिया है। जिसे देखकर सभी लोग इन बच्चियों की प्रशंसा कर रहे हैं। गौर रहे इन दिनों गौरैया अंडे देती हैं व दो माह के भीतर इनके बच्चे जन्म लेते हैं। गौरैया को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है, क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं।
पक्षी प्रेमियों के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में इसके घोंसले के लिए कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध करवाना चाहिए जहां यह पक्षी आसानी से अपना घौंसला बना सकें। उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। कई बार उनके घौंसले सुरक्षित जगह पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी अनके अंडों व बच्चों को खा जाते हैं।
क्या कहते है समाज सेवी… समाजसेवी डॉ. कंवरपाल कहते हैं कि तीन दशक पहले गौरेया की गूंज हर किसी को गांव में जगाती थी। लेकिन प्रकृति से खिलवाड़ से चिड़िया विलुप्त होती जा रही हैं। कड़ियों के मकान उनके लिए माकूल ठिकाना माना जाता है। गांवों में पक्के मकान बढ़ने से दिक्कत आई। पहले कोई पक्षियों के लिए पौष्टिक आहार बाजरा, तो कोई चावल और गेहूं के दाने डालता था। लेकिन अब बेरुखी के कारण पक्षियों की कमी खलती है।
खरपतवार को कीटनाशक दवाएं बना रही जहरीला फसलों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग बढ़ रहा है। चिड़िया जहरीले खरपतवार को आहार के रूप में प्रयोग करती हैं। जिससे उनकी प्रजनन क्षमता कम हो रही है। मोबाइल टावरों की किरणें भी पक्षियों के लिए खतरा है। जंगलों में कटान और पक्षियों के लिए मुफीद माने जाने वाले आवासों की कमी भी पक्षियों के विलुप्त होने के कारण है।