हरिपुरधार, / सुरेंद्र चौहान आस्था का प्रतीक देवी मां भंगायणी के पवित्र स्थल पर मीन संक्रांति के अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने माता रानी के मंदिर में मत्था टेका हर रविवार के दिन यहां विभिन्न राज्यों से लोग माता रानी के दर्शन करने आते है और अपनी मन्नत मुरादें पूरी करते हैं।
शिरगुल महाराज की धर्म बहन है भंगायणी
15 वीं 16 वीं शताब्दी के अंतराल से शाया नामक स्थान में राजा भूकड़ू व दुदमा रानी के घर शिरगुल, बिजट, चंदेश्वर आदि संतान पैदा होने पर शिरगुल महाराज को चूड़धार नामक स्थान में राज करने के लिए भेजा गया। जब शिरगुल देवता भ्रमण करने के लिए दिल्ली निकले तो वहां मौजूद सल्तनत ने उनको बंदी बनाया। तब शिरगुल देवता ने एक भंगीन का सहारा लेकर मुक्त होने का सुझाव दिया। तब उस भंगिन ने बन्दी बनाया गया शिरगुल को छुड़ाने का काम किया।
भंगिन को दिया हरिपुरधार स्थल
अपनी धर्म बहन बनाकर शिरगुल महाराज ने उस भंगिन को हरिपुरधार टीले पर लिंग के रूप में विराजमान कर दिया और किंवदंतियों के अनुसार उसका नाम भंगायणी पड़ा और उसकी पूजा अर्चना तत्काल प्रभाव से पवित्र स्थल पर होने लगी। और मान्यताओं का दौर दिल्ली तक बड़ा। जो आज भी विद्यमान है।