नाहन, 26 फरवरी : 1621 में बसे नाहन शहर की शान “लिटन मैमोरियल” है, इस पर कोई अतिश्योक्ति नहीं हो सकती। लेकिन शहरवासी खासकर मौजूदा युवा पीढ़ी इस बात से अनभिज्ञ होगी कि इस स्मारक पर जाइंट क्लॉक की स्थापना कब हुई थी। दरअसल वॉयस राय ऑफ इंडिया लॉर्ड लिटन के नाहन आगमन पर इस स्मारक का निर्माण 1878 में हुआ था, लेकिन उस समय इस पर विशालकाय घड़ियां (Giant Clocks) नहीं थी।
चारों दिशाओं में दूर-दूर तक समय बताने वाली इन घड़ियों को स्थापित करने का कार्य 16 अगस्त 1902 को पूरा हुआ था। बताते हैं कि एक वक्त ऐसा भी था, जब हर 15 मिनट बाद इन घड़ियों से एक अलग तरह की आवाज समय को बताया करती थी, जिससे दूर-दूर तक सुना जा सकता था। यहां तक पहाड़ की चोटी पर बने इस स्मारक को हरियाणा के मैदानी इलाको से मौसम साफ़ होने की सूरत में आज भी देखा जा सकता है।
मैमोरियल का निर्माण शमशेर प्रकाश के वक्त हुआ, लेकिन अमर सिंह के शासन की अवधि में लिटन मैमोरियल पर विशालकाय घड़ियों को स्थापित किया गया था। इन घड़ियों के उपकरणों को इंग्लैंड से आयात किया गया था। भीतर की संरचना में भी गजब का आर्किटेक्ट है। आज के आर्किटेक्ट भी इस बात पर हैरानी जाहिर करते हैं कि टनो भारी सामग्री को इतनी ऊपर कैसे पहुंचाया गया होगा।
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गरारी पर वजन डालकर मैमोरियल पर लगी विशालकाय घड़ियों की सुईया चलती हैं। लॉर्ड लिटन के नाहन आने को लेकर भी एक रोचक तथ्य है। 1877 में क्वीन विक्टोरिया ने सिरमौर रियासत के शासक को “केसर-ए-हिंद” की उपाधि दी थी। इसके बाद ही वायसराय ऑफ इंडिया को सिरमौर शासक के निमंत्रण पर नाहन आए थे।
कुल मिलाकर लिटन मैमोरियल के इतिहास से जुड़ा एक यह पहलू भी है कि इस पर विशाल घड़ियों को तुरंत नहीं लगाया गया था, बल्कि 24 साल बाद इन्हें मेमोरियल पर स्थापित किया गया था।