नाहन, 17 फरवरी : 109 साल पहले राज परिवार के सदस्य कंवर रंजौर सिंह ने सिरमौर रियासत के इतिहास से जुड़ी एक पुस्तक ‘‘तारीख-ए-सिरमौर’’ फारसी में लिखी थी। इसमें 1911 तक रियासत से जुड़ी घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया। करीब 100 साल बाद ये पुस्तक हिन्दी रूपांतर में भी उपलब्ध हुई। शिमला के जाखू के अमरनाथ वालिया इस हिन्दी रूपांतर के अनुवादक बने थे। पुस्तक के पहले भाग के तीसरे अध्याय में रियासत की पहली राजधानी क्यारदून का जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक यह राजधानी तब तक इस स्थान पर रही, जब तक गिरिनदी में बाढ़ आने की वजह से ये स्थान नष्ट नहीं हुआ था।
बता दें कि क्यारदून को सिरमौरी ताल के नाम से भी पहचाना जाता है। तीसरे अध्याय में नटनी के श्राप को दंतकथा से जोड़ा गया है। इसके मुताबिक धागे पर चलकर नटनी को गिरिनदी पार करने पर राजा ने आधी रियासत देने का वचन दिया था। जब नटनी आधा रास्ता धागे पर चल गई थी तो इसे काट दिया था। नटनी ने गिरते वक्त रियासत के गर्क होने का श्राप दिया था।
तीसरे अध्याय में पुस्तक के मूल लेखक ने स्पष्ट लिखा है कि वो इस दंतकथा के बारे में अपनी टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझते, क्योंकि साधारण समझबूझ वाला व्यक्ति इसकी सच्चाई के बारे में अनुमान लगा सकता है। जहां तक विचार किया जाता है, यह केवल एक दंतकथा ही है, क्योंकि प्राचीन काल में किसी भी घटना को अदभुत ढंग से कहानी बनाकर पेश करने का रिवाज प्रचलित था, ताकि लोग उस कहानी को रूचिपूर्वक सुन सकें।
लेखक के मुताबिक ऐसा ज्ञात होता है कि गिरिनदी में बाढ़ की घटना के साथ नटनी की अदभुत दंत कथा को जोड़ दिया गया। यह प्रत्यक्ष है कि धागे पर चलकर नदी को पार करना असंभव है। यदि मान भी लिया जाए तो ऐसा व्यक्ति जिसको नदी को धागे पर पार करने की करामात हो, वो खुद गिरकर नष्ट हो जाएगा। इसके अलावा एक तर्क यह भी दिया गया था कि राजा का आधा हिस्सा देने का वचन भी कुछ सत्य नहीं लगता। एक नटनी के साथ विश्वासघात करने पर नदी में अचानक बाढ़ आ जाना व रियायत का नष्ट हो जाना असंभव है।
लेखक ने माना है कि गिरिनदी में बाढ़ आने के कारण सिरमौरी ताल नामक जगह अवश्य ही नष्ट हुई, क्योंकि ये जगह गिरिनदी के तट पर स्थित है। लेकिन शेष दंतकथा सत्य नहीं प्रतीत होती। इस स्थान पर सिरमौर के ताल, पुराने भवन व अवशेष अब तक मौजूद हैं। इन्हें देखकर साफ प्रतीत होता है कि जल प्रलय की चपेट में आने से ये जगह नष्ट हुई थी। रियासत गर्क होने के समय मदन सिंह का शासन था। वो यादव वंशी थे। चूंकि वो जैसलमेर वंश से थे, यही कारण था कि बाद में भी रियासत की वंशावली को जैसलमेर से ही शुरू किया गया।
इतिहास के मुताबिक जैसलमेर के रावल राजा शालिवाहन का छोटा बेटा रसालू था, जिसने पहाड़ी क्षेत्रों को अपने अधीन किया हुआ था। राजा रसालू के नाम से पांवटा के निकट व अंबाला के समीप पहाड़ियां टिहरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। इससे इतिहासकारों को यही प्रतीत हुआ कि सिरमौर रियासत की पहली नीवं राजा रसालू ने ही डाली होगी। राजा बुलंद का बेटा राजा सिरमौर था, जो राजा रसालू के भाई का बेटा था। यही कारण था कि राजधानी का नाम सिरमौर रखा गया होगा, जिसके अवशेष सिरमौरी ताल में मिलते हैं।
चूंकि 1621 के बाद से सिरमौर रियासत की राजधानी नाहन में स्थापित हो गई थी। यही कारण था कि शहर के विकास से नटनी के श्राप से जोड़े जाने की चर्चाएं आज भी होती हैं।
गिरि नदी…
इस नदी का उदगम स्थल शिमला जिला में खड़ा पत्थर के समीप चंबी कुप्पड़ से माना जाता है। इस नदी को लेकर भी एक धारणा है। इसके मुताबिक इस जगह पर एक तपस्वी अपने तप में लीन थे। इसी दौरान गड़वी गिर गई। इसमें से गंगाजल भी बह गया। तब तपस्वी ने भी ये श्राप दिया था कि गिरिगंगा विपरीत बहेगी। आज भी यह नदी अपने मूल स्थान की दिशा में न बहकर उलटी दिशा में बहती हुई शिमला जिला जिला से सिरमौर में दाखिल होते हुए यमुना नदी में समा जाती है।