आनी/राकेश शर्मा
जिला कुल्लू में वैसे तो बहुत से रमणीक पर्यटन स्थल हैं, जिनकी खूबसूरती मनमोह लेती हैं। ऐसे ही रमणीक स्थलों में से एक है विश्लेऊ जोत की गोद में बसा “बागा सराहन”, जो प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब है। तक़रीबन 2 किलोमीटर विशाल मैदान में हरी मखमली घास, बीचोंबीच सर्पनुमा बागा (नहर) इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता है। चारों ओर ऊंचे -ऊंचे पहाड़, घने जंगल, पास ही निर्मल कल-कल करते झरने की मंद-मंद गति पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए काफ़ी है। क़ुदरत ऩे मानों पूरी सुंदरता इसी स्थान को बख्श दी हो। शायद यही कारण है कि पर्यटक यहां खींचे चले आते हैं।
क्या है बागा सराहन का इतिहास…
देवता जलहंडी का ऐतिहासिक मंदिर यहां मौजूद है। जलहंडी का शाब्दिक अर्थ है, जल की हंडी से निकले। जोकि भगवान शिव का स्वरूप हैं और यहां पिंडी रूप में मौजूद हैं।
मान्यता है कि अज्ञात वास के दौरान पांडव श्रीखंड होते हुए इस जगह रुके थे और पांडवों को यह बाग़ दिया था। जबकि कौरवों को साथ में लगते गांव देउगी में स्थान दिया। इस शर्त के साथ कि एक ही रात में यानि पौ फटने तक इन जगहों को कौन कितना समतल करता है। कहते हैं कि पांडवों में से अकेले विशालकाय भीम ने इस जगह को इतना समतल कर दिया था।
सर्पनुमा बागा नहर के पीछे की रोचक कहानी….
कहते हैं, भीम द्वारा इस विशाल मैदान को समतल करने के बाद यह सर (सरोवर) में बदल गया था। एक बार जब ऋषि शाणा साथ लगती पर्वत की चोटी पर तपस्या कर रहे थे, उसी दौरान स्थानीय देवता जो इस जगह अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे, दोनों का आपस में झगड़ा हो गया। शाणा ऋषि ने अपनी गदा से उन पर प्रहार किया। बाद में स्थानीय बागा देवता परास्त होकर सांप के रूप में इस मैदान से होकर निकले, जहां से भी बागा देवता सांप के रूप में गुज़रे। वहां से एक विशाल सर्पनुमा नहर सी बन गई और सरोवर का पूरा पानी वहीं से बाहर निकल गया। यही कारण है कि यहां पानी बिल्कुल शांत भाव सांप की तरह चलता प्रतीत होता है।
कहते हैं कि इस जगह का नाम सराहन, मानस रोवर की तलहटी में बसे एक गांव सराहन के नाम से पड़ा। बागा सराहन से कुछ ही दूरी पर स्थित निरमंड के देऊगी में भी पांडव अज्ञात वास में रुके थे, जहां उनके द्वारा उगाई सरसों आज भी मौजूद है। मां झराणी में है लोगों की अटूट आस्था यहां विराजमान मां झराणी में लोगों की अटूट आस्था है, जो यहां पिंडी स्वरूप में मौजूद हैं। मां झराणी को लोग घास की देवी के रूप में पूजते हैं। कहते हैं कि माता क्षेत्र के लोगों को सुख समृद्धि प्रदान करती है।
स्थानीय कारकुंनों का कहना है कि शाणऋषि मानस रोवर से यहां आए हैं और ये देवता राजनीति के माहिर हैं। क्षेत्र के सराहन, झलेहर,नोर, चायल के लोगों में शाणऋषि के प्रति गहरी आस्था है।