नाहन, 15 फरवरी : करीब डेढ़ दशक से शहर के बाईपास का मामला चल रहा है। धरातल पर कुछ भी व्यवहारिक होता नजर नहीं आ रहा। नगर निकाय के चुनाव से पहले शहर को सड़कों के किनारे पार्क मिले। इसके लिए खास तरह का एक नारा ‘‘मेरा नाहन बदल रहा है’’ भी दिया गया। मगर विडंबना यह है कि इन पार्कों तक पहुंचना बच्चों व बूढ़ों के लिए आसान नहीं है, क्योंकि संकीर्ण सड़कों को पार करना बेहद जोखिमपूर्ण है। खैर, विकास तो विकास ही है।
सवाल इस बात पर उठता है कि शहरवासियों को सुरक्षित रखने के मकसद से क्या कदम उठाए जा रहे हैं। बाईपास के निर्माण की बात तो अब लोगों ने करनी भी छोड़ दी है। शहर की सड़कें बढ़ते ट्रैफिक के कारण अब गली सी नजर आती हैं।
करीब 6 से 7 साल पहले लोक निर्माण विभाग ने शहर के ट्रैफिक का बोझ कम करने के मकसद से एक टनल के निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया था। ये प्रस्ताव चीफ इंजीनियर स्तर तक भी पहुंचा, मगर खटाई में डाल दिया गया।
एक तर्क यह दिया जाता था कि टनल के लिए संरचना उपयुक्त नहीं है। मगर कहीं न कहीं शहरवासियों के जहन में संशय जरूर है कि जब रोहतांग दर्रे के नीचे अटल टनल का निर्माण संभव हो सकता है तो नाहन शहर को बाईपास करने के लिए सुरंग क्यों नहीं बन सकती।
कालका-शिमला फोरलेन पर भी सुरंगों का निर्माण हो रहा है। यहां तक की जहां सुरंग संभव नहीं है, वहां इंजीनियरिंग के कई अन्य माॅडल्स को अपनाया जा रहा है। अलबत्ता इतना तय है कि अगर 6-7 साल पहले ही सुरंग के विकल्प को स्वीकार कर लिया जाता तो इस समय मौजूदा जयराम सरकार इसके लोकापर्ण की तैयारी कर रही होती या फिर कर चुकी होती।
दीगर है कि शहर में सड़क की चौड़ाई सिंगल लेन भी बमुश्किल नजर आती है, लेकिन इस पर डबल लेन का ट्रैफिक चलता है। बता दें कि देहरादून से शिमला का वाया नाहन ही शार्ट रूट है। इसी कारण दो राज्यों की राजधानी का ट्रैफिक भी गुजरता है। यही नहीं, शिमला व श्री रेणुका जी की तरफ जाने वाला हैवी ट्रैफिक भी संकीर्ण सड़क से ही गुजरता है।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि ये तमाम बिन्दू राजनीतिज्ञों के अलावा प्रशासन को क्यों नजर नहीं आते। कारमल कान्वेंट स्कूल के सामने अक्सर ही भारी वाहनों की ब्रेकें फेल हो जाती हैं, लेकिन मजाल है कि कोई कुछ बोले या फिर कोई प्रतिक्रिया जाहिर करे।