मंडी, 16 जनवरी : पंचायत चुनावों में पांच चेहरे ऐसे भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जो पहले विधानसभा का चुनाव में हार का सामना कर चुके हैं। विधानसभा चुनावों में सफलता न मिलने के बाद ये लोग पंचायत चुनावों में भाग्य आजमा रहे हैं। इसमें चार चेहरे जिला परिषद का चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि एक उपप्रधान के चुनाव में खुद को आजमा रहा है।
इनमें सबसे चर्चित चेहरा है, पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर। चंपा ठाकुर 2017 का विधानसभा चुनाव मंडी सदर से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लड़ चुकी हैं। कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए अनिल शर्मा को उन्होंने विधानसभा चुनावों में कड़ी टक्कर दी थी।
चंपा ठाकुर इससे पहले तीन बार जिला परिषद का चुनाव लड़ और जीत चुकी हैं। यह सभी चुनाव सदर हल्के के तहत आने वाली सीटों से ही लड़े और जीते हैं। मौजूदा समय में यह स्योग वार्ड से बतौर प्रत्याशी मैदान में हैं। इस सीट से इनका यह पहला चुनाव है। खास बात यह है कि चंपा ने तीनों चुनाव अलग-अलग सीटों से लड़े और जीते हैं।
दूसरा चर्चित चेहरा है धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले ग्रयोह वार्ड से। यहां से माकपा नेता भूपेंद्र सिंह चुनावी मैदान में हैं। भूपेंद्र सिंह वर्तमान में भी इसी वार्ड से जिला परिषद के सदस्य हैं। इन्होंने भी 2017 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए थे। अब फिर से पंचायत चुनावों में अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
2017 में ही जोगिंद्रनगर से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके कामरेड कुशाल भारद्वाज भी इस बार भराड़ू वार्ड से जिला परिषद का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं एक बार निर्दलीय और दूसरी बार लोकहित पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके मंडी सदर के रंधाड़ा गांव निवासी ई. हरीश शर्मा भी इस बार जनेड़ वार्ड से जिला परिषद का चुनाव लड़ रहे हैं।
आरक्षित सीट बल्ह से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके संजय सुरहेली भी इस बार पंचायत चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। संजय सुरहेली ग्राम पंचायत बाल्ट से उपप्रधान के पद पर चुनाव लड़ रहे हैं। हमने इन सभी प्रत्याशियों से यह जानना चाहा कि विधानसभा जैसा बड़ा चुनाव लड़ने के बाद यह क्योंकि पंचायत चुनावों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आईए बताते हैं कि इन सभी का क्या कहना था।
चंपा ठाकुर
जनता की सेवा के लिए चुनाव लड़ रही हूं। मैं खुद को गरीबों की आवाज समझती हूं और उनके हक की लड़ाई हर जगह लड़ती हूं। पहले तीन अलग-अलग वार्डों से चुनाव लड़कर जीत चुकी हूं। यह सदर क्षेत्र का चौथा वार्ड से जहां से चुनाव लड़ने का मौका मिला है। आप इस चुनाव को 2022 की तैयारी भी समझ सकते हैं। 2017 में काफी कम मार्जिन से पीछे रह गई थी और उसी कमी को पूरा करने की अब तैयारी चल रही है। 2022 में विधानसभा चुनावों में अवश्य जीत हासिल करूंगी।
भूपेंद्र सिंह
2017 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था जिसका परिणाम ठीक नहीं रहा था। लेकिन मैं मौजूदा समय में भी जिला परिषद का सदस्य हूं। इसलिए जो भूमिका निभा रहा हूं उसे निभाता रहूंगा। विधानसभा का चुनाव बड़ा चुनाव होता है। वहां जब जीत मिलेगी तब उस भूमिका को भी सही ढंग से निभाउंगा।
कुशाल भारद्वाज
लोगों के कहने पर चुनाव लड़ रहा हूं। हम वैसे भी वर्ष भर लोगों की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अब भी लोगों की आवाज बनकर चुनाव लड़ रहा हूं। मेरी नजर में कोई भी चुनाव छोटा या बड़ा नहीं होता।
ई0 हरीश शर्मा
यह कोई छोटा चुनाव नहीं है। जनेड़ वार्ड में 22 हजार मतदाता हैं और जो माहौल इन चुनावों में देखने को मिल रहा है वैसा विधानसभा चुनावों में भी नहीं होता। ग्रास रूट से जुड़े लोगों के लिए पंचायत चुनाव अपना पॉलिटिकल बेस बनाने का सबसे बेहतरीन मौका है।
संजय सुरहेली
हमने अपनी पंचायत को निर्विरोध चुनने का प्रयास किया था जिसमें हम सफल भी हुए और एक वार्ड को निर्विरोध चुना गया। लेकिन जब बात नहीं बनी तो जनता के भारी दबाव के चलते मुझे बतौर प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरना पड़ा। चुनाव कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि चुनाव के बाद आपको अपने क्षेत्र के विकास करवाने का मौका मिलता है।
दांव पर प्रतिष्ठा
कहा जा सकता है कि उक्त चेहरों की प्रतिष्ठा इन पंचायत चुनावों में दांव पर लगी है। अगर जीते तो भविष्य के लिए और सशक्त हो जाएंगे, लेकिन हारने पर भविष्य की राह काफी कठिन होने वाली है।