शिमला/सोलन, 28 अक्तूबर : अगर आप गुगल सर्च (Google Search) करेंगे तो बेशुमार ऐसी खबरें सामने आ जाएंगी, जिसमें यह बताया गया होगा कि स्वर्ण जाति के लोगों ने दलित का अंतिम संस्कार रोक दिया। यहां तक की दलित परिवार को चिता से शव उठाना पड़ा हो। लेकिन ऐसी खबर शायद ही मिले, जब यह बताया जाए कि स्वर्ण जाति के संभ्रात परिवार (Elite family) ने एक बुजुर्ग दलित का अंतिम संस्कार (Cremated) भी समुदाय के ही श्मशानघाट (Graveyard) पर किया हो। इस तरह की अनोखी मिसाल (Unique example) सोलन जनपद के अर्की उपमंडल की पलोग पंचायत के रोड़ी गांव से सामने आई है।
शायद, आप यकीन न करें, लेकिन हकीक़त (Reality) है कि 88 साल के कपूरूराम का अंतिम संस्कार दो भाईयों पंकज चौहान व अजय चौहान ने पोते(Grand Son) बनकर किया है। पहले तो गांव में इस बात को लेकर हल्की-फुल्की आपत्ति (Objection) उठी कि अंतिम संस्कार बेशक करवा लो पर उसी श्मशानघाट (Graveyard) पर होना चाहिए, जो दलितों (Dalit) के लिए है। लेकिन जैसे-तैसे परिवार (Family) ने अपने तर्क देकर गांव को इस बात को भी राजी (Agree) करवा लिया कि बुजुर्ग (Elderly) का अंतिम संस्कार वहीं होगा, जहां स्वर्ण समाज(Upper caste) के लोगों का होता है। लिहाजा इस अनूठी मिसाल (Extraordinary Example) में गांव में स्वर्ण जाति से ताल्लुक रखने वाले बुजुर्गों को भी सेल्यूट बनता है। परिवार के साथ-साथ गांव ने नाना पाटेकर के उस डाॅयलाॅग को भी सार्थक किया है, जिसमें नाना पाटेकर ने कहा था कि जब ऊपर वाले ने किसी में कोई फर्क नहीं किया तो हम कौन होते हैं समाज को बांटने वाले।
32 साल के पंकज चौहान ने ही बुजुर्ग को अपने भाई अजय चौहान के साथ मुखाग्नि (Last rituals) दी। अब तमाम संस्कार की जिम्मेदारी (Responsibly) उठा रहे हैं। घर पर 10 दिन का पिंडदान (The offerings of libations) चल रहा है। इसके बाद हरिद्वार में धर्म क्रिया (Dharm Kriya) होगी। आखिर में मृत्यु के 15 दिन पूरे होने पर घर में धर्म शांति होगी। बता दें कि धर्म शांति में पूरे गांव का भोज (Feast) होगा। एक अहम बात यह भी है कि बुजुर्ग का निधन हुए पांच दिन हो चुके हैं। इस समय घर पर पिंडदान चल रहे हैं, लेकिन परिवार ने इसका कोई प्रचार करने का प्रयास नहीं किया।
इसी बीच समाज के लिए इस अनोखी मिसाल की खबर एमबीएम न्यूज नेटवर्क तक अपरोक्ष (Indirect) तौर पर पहुंची। इसके बाद परिवार से संपर्क हुआ। परिवार के सदस्य विजय चौहान ने बताया कि परिवार अपना दायित्व निभा रहा है। उन्हें (बुजुर्ग) हम परिवार का मुखिया मानते थे। अब परिवार के मुखिया के निधन पर जो रस्में होती हैं, वो निभाई जा रही हैं।
ये बड़ा बिंदू…
मृत्यु(Death) से पहले 88 साल के कपूरूराम करीब एक साल से बीमार (Sick) भी थे। इस दौरान शौच व मलमूत्र (Defecation) के लिए भी नहीं उठ पाते थे। पंकज, अजय व उनकी बहन अनु ने अंतिम समय पर शौच उठाने में भी कोई संकोच नहीं किया। करीब 70 साल पहले कपूरूराम परिवार के पास एक सेवादार के रूप में आए थे। तब से उन्हें परिवार में एक अलग सम्मान तो मिला ही, लेकिन उनकी कोई संतान (Issueless) नहीं थी। चौहान परिवार ने उनके लिए घर का निर्माण (Construction) तो किया था। ऐसा भी नहीं था कि कपूरूराम के परिवार में कोई नहीं था। तीन बहनों का भरा पूरा परिवार है। तीन भांजे (Nephew) अंतिम संस्कार में आए, लेकिन अंत्येष्टि (Last rituals) का अधिकार चौहान परिवार ने अपने पास ही रखा। बता दें कि गांव में स्वर्ण जाति के लोगों के श्मशानघाट से ही करीब डेढ़-दो किलोमीटर दूर दलितों के 25 परिवारों के लिए अलग श्मशानघाट भी है।
ये उठता है सवाल..
अक्सर ही एससी व एसटी एक्ट (SC-ST Act) को सख्ती से लागू करने की मांग जोर-शोर से उठती है। इस घटना के बाद अब सवाल यह भी उठता है कि क्या ऐसी मांग करने वाले संगठन अब सामने आकर इस परिवार की पीठ थपथपाएंगें या नहीं।