सोलन 7 अगस्त : नगर परिषद को नगर निगम बनाए जाने की कवायद अब तेज हो गई है। शहर वासियों की चिर लंबित मांग को सिरे चढ़ाने के लिए सरकार ने जिला प्रशासन को आवश्यक निर्देश दिए हैं। इसके तहत शहर के साथ लगती 8 पंचायतों से एनओसी ली जाएगी। प्रशासन ने इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है।
बता दें कि नगर निगम संघर्ष समिति भी पिछले करीब 4 वर्षों से सोलन को निगम का दर्जा दिए जाने की मांग सरकार से कर रही है। जबकि भाजपा ने नगर निगम को चुनावी एजेंडा में भी शामिल किया था। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही सोलन के लोग उम्मीद लगाए बैठे है। निकाय चुनाव नजदीक आते ही सरकार चुनावी एजेंडे को भुना सकती है।
गौरतलब है कि आंकड़ों की गफलत में सोलन नगर परिषद् को नगर निगम का दर्जा नहीं मिल पाया था। नगर परिषद इस बार नगर निगम के लिए निर्धारित पैरामीटर को सशक्तता से पेश करना चाहेगी।
बता दें कि इससे पहले नगर परिषद की तरफ से सरकार को भेजे गए प्रस्ताव को आबादी का आकंड़ा कम होने के चलते नकार दिया था। हालांकि नगर परिषद ने बाद में शर्तो के मुताबिक सरकार को नए सिरे से प्रस्ताव भेज दिया था, लेकिन राजनीतिक उपेक्षा के चलते बात नहीं बनी।
नगर निगम का दर्जा हासिल करने के लिए शहर की आबादी 50 हजार से ऊपर होना जरूरी है, लेकिन शहर के साथ लगते कस्बों को मिलाकर यह संख्या कहीं अधिक हो जाएगी। देखना है कि नगर परिषद इस पर कितना खरा उतर पाएगी।
सोलन शहर में प्रदेश में अन्य शहरों के मुकाबले तेजी से विकसित हो रहा है। यहां शैक्षिणक संस्थान खुलने के साथ औद्योगिक इकाईयां भी स्थापित हुई है। आर्थिक दृष्टि से सुदृढ होने के चलते यहां पर पिछले कुछ वर्षा में दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीयकृत बैंक शाखाएं खुल चुकी है। इन ही विशेषताओं के चलते लंबे समय से सोलन नगर निगम बनाने की दौड़ में शामिल है।
सोलन प्रदेश का प्रवेशद्वार होने के साथ यहां पर पिछले दो दशक में तेजी से शहरीकरण हुआ है। ट्रैफिक की दृष्टि से सोलन में हर परिवार के पास दो से तीन वाहन हैं। नगर परिषद के पास शहर की आबादी का सही आंकड़ा मौजूद ही नहीं है। ऐसे में मात्र अनुमानित आंकड़े ही प्रस्तुत किए जाते रहे हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक शहर की आबादी 39 हजार थी, लेकिन इसके बाद शहर में तेजी से शहरीकरण हुआ। इस अवधि के दौरान अब तक शहर में सैंकड़ों भवन व फ्लैटों का निर्माण हो चुका है। इसी लिहाज से आबादी में भी बढ़ौतरी हुई है।
शहर के साथ लगते कुछ ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल किए जाने का विरोध है, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर बाहरी क्षेत्रों के लोग आकर बसे हैं। इसमें मुख्यता रबौण, देंऊघाट, शामित व कथेड़ ऐसे क्षेत्र हैं जहां बाहर से आकर बड़ी संख्या में लोग बसे हैं। इन क्षेत्रों में साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट व सड़कों की सुविधा नहीं होने से लोग नगर निगम में शामिल होने को राजी है। वहीं, आंजी, बसाल के अलावा डमरोग और कोठो गांव में कृषिहारी क्षेत्रों को छोड़कर शहर से सटे क्षेत्रों का विलय किया जा सकता है।
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