शिमला: अप्रैल, मई व जून में राज्य में कोरोना की वजह से 9 का निधन हुआ। वहीं महज अप्रैल व मई में 136 हिमाचलियों ने सुसाइड (Suicide in Himachal) से मौत को गले लगा लिया। यानि औसतन हर रोज 2 ने आत्महत्या(Suicide) का रास्ता चुना। इसमें 78 पुरुषों व 58 महिलाओं ने सुसाइड किया। फिलहाल जून माह में आत्महत्या के आंकड़े उपलब्ध नहीं हुए हैं, लेकिन इतना जरूर है कि लगातार यही औसत जारी है। निश्चित ही कोरोना की जंग को जीतना हर हाल में लाजमी है, लेकिन इस बीच हिमाचल में आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों के बारे में भी सरकार का ध्यान आकर्षित करवाया जाना चाहिए, ताकि लोगों खासकर युवाओं में बढ़ रही बैचेनी को समझा जा सके। फिलहाल, बढ़ती आत्महत्याओं के मामलों को इस स्तर पर कोरोना से जोड़ना न्यायसंगत नहीं है, लेकिन इसे भी हल्की वजह माना जा रहा है।
अप्रैल माह में 47 सुसाइड के मामले आए, जबकि मई के महीने में यह आंकड़ा बढ़कर 89 हो गया। मतलब, मई के महीने में प्रतिदिन की औसत 3 के करीब पहुंची। सवाल उठ रहा है कि क्या अब वो वक्त भी आ चुका है, जब डिप्रेशन(depression) का सामना कर रहे युवाओं के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग(Counseling) की व्यवस्था की जानी चाहिए। अप्रैल व मई के महीने में 14 मामले ऐसे थे, जिसमें पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले दर्ज किए। एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा जुटाई जानकारी के मुताबिक महज दो महीनों में सबसे अधिक 21 मामले कांगड़ा जिला से सामने आए(Kangra district reported the highest 21 cases in two months)। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दो महीनों में लाहौल-स्पीति से सुसाइड का एक भी मामला सामने नहीं आया। एक अहम ट्रेंड(Trend) यह भी सामने आया है कि अधिकांश ने फंदे से झूलकर आत्महत्या की है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क(MBM News Network) की युवाओं से गुज़ारिश है कि इस तरह का कायरता वाला कदम न उठाएं। जीवन बेहद ही सुनहरी है। हार के बाद जीत के रास्ते भी खुलते हैं। आत्महत्या के eएक कदम से परिवार को भी आपके दुनिया से चले जाने के बाद कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
ये भी हैं आंकड़े…
अगर गौर किया जाए तो 2019 में भी आत्महत्या के मामले कम नहीं थे। इस साल 630 ने सुसाइड किया था। प्रतिदिन की औसत 1.72 रही। इस साल 31 मई तक आंकड़ा 268 पहुंचा। प्रतिदिन की औसत 1.77 है। यानि आंशिक वृद्धि हुई है। प्रश्न यह भी पैदा होता है कि जब 2019 में आत्महत्याओं का आंकड़ा बढ़ रहा था तो उस समय काउंसलिंग(Counseling) के अलावा अन्य कदम उठाने की कोशिश क्यों नहीं की गई। 2019-2020 के आंकड़ों की अगर तुलना की जाए तो यह बात भी साफ होती नजर आ रही है कि लाॅकडाउन(Lockdown) की वजह से आत्महत्याओं की घटनाएं नहीं बढ़ी हैं। 2019 में पूरे साल में आत्महत्या के उकसाने के 67 मामले थे, तो वहीं 2020 में 31 मई तक यह आंकड़ा 31 का है।
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