नाहन : एक जमाना था, जब नाहन में तापमान बढ़ता था तो कुदरती तौर पर ही बारिश हो जाया करती थी। नतीजा यह होता था कि 70 के दशक में घरो में एसी तो दूर पंखे तक नहीं थे। मगर धीरे-धीरे बहुमंजिला इमारतों व पर्यावरण दूषित होने की वजह से वो सुनहरी दिन गायब हो गए। औद्योगिक मार भी पर्यावरण पर पड़ी। 4 मई हो चुकी है, मगर शहर में 70 के दशक की तरह एसी व पंखों की जरूरत नहीं महसूस हो रही। हालांकि कुछ लोग पंखों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन एसी तो ऑन ही नहीं हुए। अब आप वैज्ञानिक नजरिए से समझें कि इसका फायदा कोरोना संकट में कैसे हो रहा है।
दरअसल, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने भी एक एडवाइजरी जारी की थी। पहले एसी के इस्तेमाल को मना किया गया था, लेकिन बाद में कहा गया कि अगर एसी चलाना जरूरी है तो घर की किसी खिड़की को मामूली सा खुला रखें। ताजा मीडिया रिपोर्टस का उदाहरण लें तो नांदेड साहिब से पंजाब पहुंचे श्रद्धालुओं को इस कारण भी कोरोना संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि एसी बसों में सफर कर पहुंचे थे। विश्व में भी ऐसी जगहों में कोरोना का अधिक प्रकोप है, जो ठंडे देश हैं। बेशक ही वैज्ञानिक इस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण खत्म हो सकता है। मगर यह नैचुरल ही है कि सर्दी या फिर कम तापमान में खांसी व जुकाम की शिकायत गर्मियों की तुलना में अधिक होती है। इसी कारण संक्रमण की संभावना भी अधिक हो जाती है। पहले से भी इस बात को स्वीकार किया जाता है कि अगर किसी को सर्दी-जुकाम है तो उससे दूरी बनाए रखें, अन्यथा संक्रमण आ सकता है।
कुल मिलाकर लॉकडाउन में अगर शहर का तापमान उस स्थिति में पहुंचता है, जब पंखों की जरूरत पड़े तो तुरंत की कुदरत बारिश से इस तापमान को संतुलित कर देती है। शहर के कुछ प्रबुद्ध लोग इसे लॉकडाउन से भी जोड़कर देखते हैं। कुल मिलाकर वक्त ऐसा है, जब आपको सामान्य खांसी-जुकाम से भी बचाव करना है। इसमें कुदरत के इशारे को समझना चाहिए।